दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 268 में बताया गया है कि राज्य सरकार कुछ विशेष परिस्थितियों में जेल में बंद कैदी को न्यायालय में पेश होने से रोक सकती है। सीआरपीसी की धारा 269 में बताया गया है कि जेल अधीक्षक भी कुछ विशेष परिस्थितियों में कैदी को कोर्ट पेशी पर भेजने से इंकार कर सकता है। अब प्रश्न उपस्थित होता है कि जेल में बंद कैदी को कोर्ट में पेश करने की जिम्मेदारी किसकी है। उसे गिरफ्तार करने वाले इंस्पेक्टर की या फिर जेलर की, आइए जानते हैं:-
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 270 की परिभाषा
जब दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 268 एवं 269 बंदी व्यक्ति पर लागू नहीं होती है, तब जेलर, कारागार में बंद व्यक्ति को निम्न प्रकार से न्यायालय के समक्ष हाजिर करेगा:-
1. जेल अधीक्षक का कर्तव्य हैं कि वह स्वंय की सुरक्षा या पुलिस की सुरक्षा पर बंदी कैदी को न्यायालय के समक्ष पेश करेगा।
2. जब तक सुनवाई पूरी नहीं हो जाती तब तक बंदी व्यक्ति को न्यायिक हिरासत एवं पुलिस सुरक्षा में रखा जाएगा।
3. न्यायालय जो भी आदेश बंदी व्यक्ति के पक्ष मे या विपक्ष में देगा उसके बाद ही बंदी व्यक्ति को न्यायिक हिरासत में लिया जाएगा।
अर्थात बंदी व्यक्ति की परीक्षा करवाने की जिम्मेदारी जेल के भारसाधक अधिकारी की होगी। उसके बाद न्यायालय जिस प्रकार का आदेश देगा, उसका पालन करते हुए कैदी को वापस जेल में बंद कर देगा या फिर जेल से रिहा कर देगा। इसके लिए उसे किसी इंस्पेक्टर या पुलिस अधीक्षक से किसी भी प्रकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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