देशभर में हर रोज पुलिस थानों में दर्ज FIR के आधार पर लाखों समाचार प्रकाशित किए जाते हैं। कई बार निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ किसी साजिश के तहत FIR दर्ज हो जाती है। विवेचना की प्रक्रिया में अथवा न्यायालय में ट्रायल के दौरान वह निर्दोष पाया जाता है। सवाल यह है कि क्या ऐसे निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ FIR के आधार पर समाचार का प्रकाशन करना, उसकी मानहानि करने जैसा है। क्या FIR के आधार पर समाचार प्रकाशित करने वाले पत्रकार के खिलाफ न्यायालय में मानहानि का मुकदमा प्रस्तुत किया जा सकता है।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 499 (अपवाद क्रमांक 04) की परिभाषा:-
यदि कोर्ट में दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद किसी व्यक्ति को अपराधी घोषित किया गया है तो उस के संदर्भ में प्रकाशित सभी समाचार किसी भी परिस्थिति में उसकी मानहानि नहीं माने जाएंगे। इसके अलावा न्यायालय की कार्यवाही का प्रकाशन मानहानि का अपराध नहीं माना गया है। आईपीसी की धारा 499 के अपराध क्रमांक चार में स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी कार्यपालिका के अधिकारी (सरकारी अधिकारी) द्वारा किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ कोई निर्णय किया गया है, तब उसे प्रकाशित करना भी मानहानि का अपराध नहीं होगा। कलेक्टर आदि अधिकारियों के इस प्रकार के निर्णय को न्यायिक निर्णय माना जाता है।
पुलिस FIR के आधार पर समाचार छापना अपराध नहीं है जानिए
टी• सतीश वी• पई बनाम नारायण नागप्पा नायक:-उक्त मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि एक बार जब दण्ड संहिता के अधीन अपराध कारित होने की FIR रिपोर्ट दर्ज करा दी जाती हैं, और लोक प्राधिकारी उसका संज्ञान कर लेते है एवं आवश्यक कानूनी कार्यवाही प्रारंभ हो जाती है तो समाचार पत्रों में इस अपराध के बारे में FIR के तथ्यों को प्रकाशित करना मानहानि का अपराध नहीं है एवं ऐसे पत्रकार, संपादक को अपवाद क्रमांक 04 के अंतर्गत विधिक संरक्षण प्राप्त होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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