ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिला मुख्यालय से महज 70 किमी दूर बना प्राचीन धूमेश्वर महादेव मंदिर आज भी हजारों लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है। जहां रोजाना की तरह श्रावण माह में सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। मंदिर में विराजमान विशाल शिवलिंग अद्भुत है। हजारों साल पहले इस प्राचीन मंदिर को बनाया गया था। जिसकी कलात्मकता आज भी देखने लायक है। बेहतर चमत्कारी और कारीगरी से बनाया गया धूमेश्वर महादेव का मंदिर आज भी पहले की तरह ही नजर आता है।
बताया जाता है कि मंदिर में विराजमान शिवलिंग पार्वती नदी के गर्भ से निकला था। इस शिवलिंग पर पार्वती का विशाल झरना अभिषेक करता था। सूर्यदेव की पहली किरण शिवलिंग पर पड़ती है। तेज बहाव के कारण करीब 500 फीट की ऊंचाई से पानी गिरने के कारण धूमेश्वर धाम नाम पड़ा था। यह मंदिर इतिहास की कड़ियों और श्रद्धा की माला की तरह जुड़ा हुआ है। हर साल पार्वती नदी में बहाव तेज हाेता है, जो धूमेश्वर धाम की चौखट काे छूकर ही शांत होता है। जबकि नदी के बहाव से मंदिर करीब 200 से 250 मीटर की दूरी पर है। मान्यता है कि इस प्रकार से माता पार्वती, महादेव से मिलने आती हैं। जहां दूर-दूर से लोग धूमेश्वर धाम के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। श्रावण माह में इस मंदिर पर श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जा सकती है। महाशिवरात्रि को मंदिर पर विशाल मेला आयोजित किया जाता है।
प्राचीन मंदिर के चारों तरफ नजर आने वाली मूर्तियां कई तरह के रहस्यों से जुड़ी हुई हैं। सैकड़ों सैलानी इस मंदिर की अद्भुत कारीगरी और रहस्यों को जानने के लिए पहुंचते हैं। बड़ी-शिलाओं से बना यह मंदिर आज भी लोगों के लिए चर्चा का केंद्र बनता रहता है। जहां महामंडलेश्वर अनिरुद्धवन महाराज इस मंदिर के महंत हैं।
इतिहासकारों का मानना है कि धूमेश्वर मंदिर नागवंशियों के समय में बनाया गया था। बाद में ओरछा के राजा वीर सिंह देव ने वर्ष 1605-1627 के बीच जिसे बेहतर रूप से बनवाया। इसके बाद 1936-1938 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार ग्वालियर के शासक महाराजा जीवाजी राव सिंधिया द्वारा करवाया गया था। धूमेश्वर मंदिर राजपुताना शैली में नजर आता है। पहले मंदिर का सिर्फ गर्भगृह था, जो अद्भुत कलाल्मकता के साथ बना हुआ है। जिसका अगला हिस्सा बाद में निर्मित कराया गया।