इंदौर। जीएसटी काउंसिल ने बीते सप्ताह हुई बैठक के बाद गैर ब्रांडेड यानी लेबल वाली खाद्य सामग्री को भी पांच प्रतिशत जीएसटी के दायरे में ले लिया है। जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद हुई इस घोषणा का विरोध शुरू हो गया है। 18 जुलाई से नए नियम को लागू करने की बात कही गई है। हालांकि नए नियमों को लेकर अब भी अधिसूचना जारी नहीं की गई है। निर्णय के खिलाफ व्यापारी एकजुट हो गए हैं। मंगलवार को इंदौर व्यापारी संगठनों ने बैठक बुलाकर महंगाई बढ़ने पर चिंता जताई।
जीएसटी में अब तक गैर ब्रांडेड खाद्य सामग्री को टैक्स के दायरे से मुक्त रखा जा रहा है। सीए भरत नीमा के अनुसार अब तक शर्त रखी गई थी कि खाद्य सामग्री जो अनब्रांडेड है, उस पर एक्शनेबल क्लेम नहीं लिया जाता, तो वह जीएसटी से मुक्त रखी जाएगी। इस निर्णय के बाद देश के तमाम अनाज, दाल, दलहन कारोबारी बीते पांच वर्षों से अपनी पैकिंग के नीचे एक्शनेबल क्लेम नहीं लेने की सूचना लिखवाकर टैक्स से छूट हासिल कर रहे थे। अब जीएसटी एक्ट में ब्रांडेड शब्द को बदलकर उसके साथ लेबल्ड फूड भी लिखा जा रहा है। इस नियम के लागू होने से हर तरह की अनाज, दाल, मैदा, आटा जैसे कृषि उत्पाद और सामग्री जीएसटी के दायरे में आ जाएगी।
10 से 15 फीसद महंगी हो जाएंगी जरूरत की वस्तुएं
इंदौर चावल व्यापारी एसोसिएशन ने खाद्य सामग्री अनाज, दालों को जीएसटी के दायरे में लाने के विरोध में बैठक ली। एसोसिएशन ने बैठक में प्रस्ताव पारित किया और कहा कि इस मुद्दे पर प्रदेशभर के व्यापारियों का समर्थन मांग कर ज्ञापन दिल्ली भेजा जाएगा। दरअसल, पांच प्रतिशत टैक्स लगाने का असर होगा कि आम लोगों के लिए अनाज, आटा जैसी आम जरूरतों की वस्तुएं 10 से 15 प्रतिशत तक महंगी हो जाएगी। एसोसिएशन ने कहा कि सरकार भले ही विलासिता की वस्तुओं पर भारी भरकर कर लगा दे, लेकिन आम लोगों का खाद्यान्ना महंगा न करें। ऐसी वस्तुओं पर कारोबार ही 1 से 2 प्रतिशत के मुनाफे पर होता है। जीएसटी के दायरे में आने पर ई-वे बिल की बाध्यता भी लागू हो जाएगा। ऐसे में कारोबार की मुश्किल बढ़ जाएगी। व्यापारियों का जीएसटी की कार्रवाई का खर्च भी टैक्स के साथ जुड़ जाएगा।