एक पार्षद से लेकर सांसद का पद एक जन- कल्याणकारी पद होता है, इस पद पर जो व्यक्ति होता है वह जनता द्वारा जनता का प्रतिनिधि होता है। उसका कर्तव्य है की वह अपने स्थानीय लोगों की हर समस्या का समाधान करने की कोशिश करे। कभी-कभी जनता भी आवेश में आकर ऐसे जनप्रतिनिधियों के बारे में आलोचना करते हैं एवं तीखी बाते बोल देते हैं तब क्या आलोचना या खरी-खोटी बोलने वाले व्यक्ति के खिलाफ जन-प्रतिनिधि मानहानि का केस दर्ज करवा सकता है जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1860 की धारा 499 (अपवाद क्रमांक 03) की परिभाषा
अगर कोई व्यक्ति लोकसेवक के अलावा अन्य व्यक्ति या जनप्रतिनिधियों के चरित्र के बारे मे आलोचना या टिप्पणी बिना किसी भेदभाव के करते हैं तब यह मानहानि का अपराध नहीं होगा। इस अपवाद के संदर्भ में न्यायालय द्वारा टी. कुन्हाम्बू बनाम ए. सोजाथ मामले में यह उल्लेख किया कि सांसदों, विधायकों, निगम के पार्षदों या जन-सेवको आदि के सार्वजनिक आचरण के बारे में निःसन्देह उचित टीका-टिप्पणी की जा सकती हैं भले ही वह कितनी ही तीखी या चुभती हुई क्यों न हो। लेकिन उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में कीचड़ उछालना मानहानि का अपराध हो सकता है।
कुल मिलाकर एक आम नागरिक किसी भी विधायक, सांसद अथवा मंत्री के कामकाज की अपने तरीके से समीक्षा कर सकता है और किसी भी सार्वजनिक स्थल पर आलोचना कर सकता है। यदि उसके शब्दकोश में कुछ शब्द असंसदीय है, तब भी वह मानहानि का अपराधी नहीं होगा, लेकिन यदि उसके निजी जीवन के बारे में ऐसा किया गया तो जनप्रतिनिधि को मानहानि का मुकदमा ठोकने का अधिकार मिल जाएगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com