बहुत से लोगों को यह जानकारी नही होती कि न्यायालय कितने प्रकार के होते हैं। आज हम आपको सरल हिंदी भाषा में बताएंगे कि भारत में एकीकृत न्यायालय पालिका होती है एवं सर्वोच्च न्यायालय एक ही होता है। उच्चतम न्यायालय के नीचे राज्यों में उच्च न्यायालय होते हैं। जब उच्च न्यायालय के निचले स्तर पर देखे तो हम तीन प्रकार के न्यायालय को देखते हैं (1). जिला न्यायालय, (2). सत्र न्यायालय एवं (3) राजस्व न्यायालय।
जिला न्यायालय में सिविल मामलों की सुनवाई की जाती है एवं यह सुनवाई जज द्वारा होती हैं एवं सत्र न्यायालय में आपराधिक मामलों की सुनवाई की जाती है यह सुनवाई मजिस्ट्रेट द्वारा होती हैं तथा राजस्व मामलों में भूमि संबंधित मामलों की सुनवाई कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा होती है। यह मजिस्ट्रेट सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं जैसे DM, ADM, SDM (शांति व्यवस्था के लिए), SDO (भूमि संबंधित मामलों के लिए) आदि ।
यहाँ हम सिर्फ आपराधिक न्यायालय की बात कर रहे हैं जिसका वर्गीकरण इस प्रकार हैं जानिए:-
• दण्ड न्यायालय में सबसे निचले स्तर पर द्वितीय न्यायिक मजिस्ट्रेट, विशेष न्यायिक एवं महानगर मजिस्ट्रेट होते हैं। मजिस्ट्रेट को एक वर्ष के कारावास या पांच हजार रुपए तक जुर्माना या दोनों से दण्डित करने की शक्ति प्राप्त होती है।
• इसके बाद प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं महानगर मजिस्ट्रेट आते हैं इनको अधिकतम तीन वर्ष के कारावास या दस हजार रुपए जुर्माना या दोनो से दण्डित करने की शक्ति प्राप्त है।
• प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट के ऊपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट होता है इनको अधिकतम सात वर्ष की कारावास एवं जुर्माना से दण्डित करने की शक्तियां प्राप्त होती है।
• मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के ऊपर होता है सहायक सत्र न्यायालय जिसे अधिकतम दस वर्ष की कारावास एवं जुर्माना से दण्डित करने की शक्ति प्राप्त है।
• सहायक सत्र न्यायालय से ऊपर होता है सत्र या सेशन न्यायालय आपराधिक मामलों के यह न्यायालय सभी प्रकार की सजा देने का अधिकार रखता है लेकिन मृत्यु की सजा देने से पहले यह उच्च न्यायालय की पुष्टि करना आवश्यक समझता है।
इनके ऊपर हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट होते हैं जिनको राजस्व मामले, आपराधिक मामले एवं सिविल मामलों एवं न्यायालयों का अपीलीय न्यायालय कहा जाता है। इन न्यायालय को विधि द्वारा सभी प्रकार के दण्डादेश देने की शक्ति प्राप्त होती है।
सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट में डायरेक्ट किसी मामले का विचारण नहीं किया जाता। इनमें सिर्फ आदेशो, निर्णय, डिक्री के लिए पुनः निरीक्षण, पुनः विचारण ,पुनः अवलोकन आदि के लिए अपील की जाती है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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