भोपाल। पूरे भारत में दिग्विजय सिंह एक नेता है। मध्यप्रदेश में राधौगढ़ के राजा लेकिन राजगढ़ में दिग्विजय सिंह को दाता कहा जाता है। कहते थे कि राजगढ़ में चुनाव लड़ना तो दूर की बात दिग्विजय सिंह की मर्जी के बिना भाजपा के नेता टिकट भी नहीं मांगते थे। आज उसी राजगढ़ नगर पालिका में 15 वार्डों में से केवल 3 वार्डों में कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव जीत पाए हैं।
राजगढ़ नगर पालिका के चुनाव परिणाम आ चुके हैं। 15 वार्डों की इस नगर पालिका में 12 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जोरदार जीत दर्ज कराई है। कांग्रेस पार्टी 3 सीटों पर सिमट कर रह गई। मोटे तौर पर देखा जाए तो यह आंकड़े मध्य प्रदेश की राजनीति को कतई प्रभावित नहीं करते लेकिन थोड़ा गौर से देखेंगे तो समझ में आएगा कि दिग्विजय सिंह और उनके परिवार की नींव हिल गई है।
कुछ सालों पहले तक यहां दिग्विजय सिंह का ऐसा प्रभाव हुआ करता था कि भारतीय जनता पार्टी को प्रत्याशी ही नहीं मिलते थे। भाजपा के कार्यकर्ता चुनाव लड़ने को तैयार ही नहीं होते थे। फिर दिग्विजय सिंह की तरफ से इशारा होता था और भाजपा के कुछ नेता लोकतंत्र की औपचारिकता पूरी करने के लिए पार्टी का मैंडेट लेकर नामांकन फॉर्म जमा कर दिया करते थे।
इस बार के चुनाव परिणाम ने पूरा चित्र ही बदल दिया है। मानव राजगढ़ में दिग्विजय सिंह और उनके परिवार का नामोनिशान ही ना बचा हो। शायद दिग्विजय सिंह को इसकी जानकारी पहले ही हो गई थी। इसीलिए, राजा साहब 2019 में भोपाल शिफ्ट हो गए।