भोपाल। मध्यप्रदेश में दमोह लोकसभा सीट से सांसद प्रहलाद पटेल केंद्रीय मंत्री भी हैं। संगठन में काफी पावरफुल है परंतु दमोह की जमीन पर भाजपा के युवा नेता सिद्धार्थ मलैया के साथ संघर्ष कर रहे हैं। उप चुनाव के बाद नगर पालिका चुनाव में भी सिद्धार्थ का असर दिखाई दिया, प्रह्लाद का असर दिखाई नहीं दिया।
दमोह का राजनीतिक इतिहास कुछ फिल्मी सा है। यहां की राजनीति पर टंडन और मलैया परिवार का कब्जा बना हुआ है। सन 1967 से टंडन परिवार दमोह में सक्रिय है और कांग्रेस पार्टी का चेहरा बना हुआ है। जयंत मलैया ने टंडन परिवार से संघर्ष करते हुए दमोह में भारतीय जनता पार्टी की जड़े मजबूत की हैं। किसी संगठन मंत्री की कृपा से टिकट नहीं मिला बल्कि अपना परिश्रम और पूंजी लगाकर पार्टी को खड़ा किया है।
कांग्रेस पार्टी का लीगल टेंडर आज भी टंडन परिवार के पास है लेकिन भारतीय जनता पार्टी जयंत मलैया की जकड़ से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है। उम्र के आधार पर जयंत मलैया को आसानी से VRS दे दिया गया परंतु उन्होंने अपने बेटे सिद्धार्थ के लिए उत्तराधिकार मांगा है, जो रिजेक्ट कर दिया गया।
जाति के आधार पर चुनाव जीतने के लिए महाकौशल के नेता प्रहलाद पटेल को दमोह सीट से उतारा गया। प्रहलाद पटेल सांसद भी बने और केंद्रीय मंत्री भी परंतु अब बुंदेलखंड में अपना सिक्का जमा रहे हैं। मलैया परिवार से उसका सब कुछ छीन लेना चाहते हैं, लेकिन सिद्धार्थ ने भी मोर्चा खोल दिया है। विधानसभा चुनाव 2023 से पहले दमोह के राजनीतिक अखाड़े में सिद्धार्थ और प्रहलाद का मल्लयुद्ध सबको दिखाई देगा। यदि सिद्धार्थ हार गए तो निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे लेकिन यदि जीत गए तो प्रह्लाद क्या करेंगे, इस प्रश्न का उत्तर अभी अज्ञात है।