क्या आप जानते हैं कि हमारे भोजन में शामिल होने वाले अधिकांश अनाजों का संबंध घास से है। वैसे तो पालतू पशुओं के चारे के रूप में काम आने वाले आने वाली सभी वनस्पतियों को घास कहा जाता है परन्तु मॉडर्न क्लासिफिकेशन के अनुसार केवल घास कुल (Gramineae or poaceae Family) के पौधों को ही इसके अंतर्गत रखा गया है और आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान गणेश को चढ़ाई जाने वाली दुर्वा भी घास हैं, जबकि इतनी ऊँचाई वाला ईख और बांस भी एक प्रकार की घास ही है। तो चलिए आज हमारे साथ घास के मैदान में सफर पर चलते हैं।
धर्मग्रंथो में घास को राष्ट्र की रक्षक और भारत की ढाल कहा गया है। जो कि जमीन के ऊपर से और जमीन के नीचे से दोनों ही तरह से भारत भूमि की रक्षा करती है। घास की घनी पत्तियां होने के कारण तेज हवा द्वारा मिट्टी का कटाव नहीं हो पाता। जबकि जमीन के अंदर घास की जड़ों का घना जाल रहता है। जो कि मिट्टी के कटाव को रोकता है। इसके साथ ही घास की जड़ों में कई प्रकार के फायदेमंद जीवाणु भी पाए जाते हैं जो कि वायुमंडल की नाइट्रोजन को अवशोषित कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
घास के फूल में पुंकेसर (Stamen) और स्त्रीकेसर (Pistil) अधिकतर साथ साथ में होते हैं, जिसके कारण स्व-परागण (Self-Pollination) आसानी से होता है और घास बहुत बड़े एरिया में फैल जाती है। ऐसे स्थान जहाँ घास बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है उन्हें ब्रैड बास्केट्स कहा जाता है। अलग अलग देशों में घास के मैदानों को अलग- अलग नाम से जाना जाता है, जैसे-
- संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में घास के मैदान प्रेरिज (prairies)
- अर्जेंटीना में पंपास (Pampas)
- ऑस्ट्रेलिया में डाउन्स(Downs)
- यूरेशिया में स्टेप्स या स्टेपी(Stapes/Steppe)
- और दुनिया का सबसे महंगा ग्रासलोन विंबलडन है।
घास का वैज्ञानिक नाम साइनोडॉन डकटाईलोन (Cynodon dactylon) एकबीजपत्री पौधा है और इसकी विशेषता है कि इसकी प्रत्येक गांठ से रेखीय पत्तियाँ निकलती है। इसी कारण यह इतनी आसानी से कितने भी बड़े एरिया में फैल जाती है। मेडिटेरियन सी में पायी जाने वाली समुद्री घास की एक स्पीशीज़ के बारे में तो साइंटिस्ट का यहाँ तक कहना है कि घास अब तक के खोजे गए सबसे पुराने लिविंग ऑर्गेनिज्म है।