भारत के नक्शे पर बिल्कुल केंद्र में स्थित मध्य प्रदेश का एक क्षेत्र ऐसा है जो विशाल ज्वालामुखी के लावे पर बसा हुआ है। ज्वालामुखी में विस्फोट कब हुआ था, और उसमें क्या कुछ बर्बाद हुआ? इसका ठीक-ठीक उल्लेख तो नहीं मिलता लेकिन उसके लावे के कारण मध्यप्रदेश का पश्चिमी भाग आज भी खुशहाल है।
ज्वालामुखी के कारण हजारों साल से जमीन उपजाऊ बनी हुई है
वर्तमान में इस क्षेत्र को मध्य प्रदेश का मालवा कहा जाता है। यह काफी प्राचीन क्षेत्र है। मालवा का पठार न केवल क्षेत्र की पहचान है बल्कि खेतों में लहराती फसलों का कारण भी यही है। ज्वालामुखी के लावा के कारण यहां की जमीन हजारों साल से उपजाऊ बनी हुई है। ज्वार, गेहूँ, चना तथा तिलहन के अतिरिक्त लावा की काली रेगर भूमि पर कपास पैदा होती है।
कल्पना कीजिए, ज्वालामुखी कितना बड़ा रहा होगा
मालवा के पठार में आज की स्थिति में 350 फीट मोटी ज्वालामुखी के लावे की परत मौजूद है। यह एक त्रिभुजाकार पठार है। इसके पूर्व में बुदेंलखंड और उत्तर पश्चिम में अरावली पहाड़ियाँ स्थित है। इसकी ढाल उत्तर पूर्व की ओर है। मालवा का पठार मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान और गुजरात तक फैला हुआ है। मालवा के पठार का कुल क्षेत्रफल 88,222 वर्ग किलोमीटर है। जरा कल्पना कीजिए कितना बड़ा ज्वालामुखी रहा होगा। जिसके लावा से बना हुआ पठार इतना बड़ा है। मध्यप्रदेश में मालवा का विस्तार भोपाल, गुना, रायसेन, सागर, विदिशा, देवास, सीहोर, उज्जैन, शाजापुर, इंदौर, रतलाम, धार, झाबुआ, मंदसौर, राजगढ़ एवं नीमच जिलो तक है।