आपने देखा होगा भगवान शिव के मस्तिष्क पर चंद्रमा एक आभूषण की तरह सुशोभित होता है। क्या आप जानते हैं यह चंद्रमा पंचमी तिथि का चंद्रमा होता है। भगवान चाहते तो पूर्णिमा का पूरा गोल चंद्रमा भी अपनी जटाओं में सजा सकते थे, फिर क्या कारण है कि भगवान शिव ने अपने मस्तिष्क पर पंचमी तिथि का चंद्रमा धारण किया। आइए वैज्ञानिक कारण समझने की कोशिश करते हैं:-
यदि आप भोपाल समाचार के नियमित पाठक है तो आप जानते ही हैं कि किसी बॉलीवुड फिल्म के गाने के कारण चंद्रमा को मामा नहीं कहते बल्कि पृथ्वी और चंद्रमा की उत्पत्ति की प्रक्रिया समान है। यानी दोनों के जनक एक हैं। इसलिए दोनों को भाई-बहन माना गया है। क्योंकि हम पृथ्वी को मां का दर्जा देते हैं इसलिए चंद्रमा को मामा कहा जाता है। सूरज को चाचू केवल मुन्ना भाई ही कह सकते हैं, साइंस के स्टूडेंट्स नहीं।
यह भी आप जानते ही हैं कि चंद्रमा के कारण पृथ्वी पर जीवन मौजूद है। चंद्रमा के कारण ही समुद्र में हलचल होती है और चंद्रमा के कारण ही पृथ्वी पर ऑक्सीजन का प्रवाह होता है। चंद्रमा एकमात्र ऐसा उपग्रह है जिसका पृथ्वी पर प्रभाव प्रतिदिन बदलता है। अमावस्या के दिन शून्य के समान और पूर्णिमा के दिन सबसे बलवान होता है, लेकिन पंचमी एकमात्र सी तिथि है जब चमत्कार होता है।
पंचमी तिथि पर चंद्रमा के कारण पृथ्वी पर विष का प्रभाव बहुत कम हो जाता है। यही कारण है कि पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा की जाती है क्योंकि उस दिन वह नहीं रहता। यही कारण है कि बसंत ऋतु की पंचमी तिथि के दिन माता सरस्वती ने प्रकृति में रंग भरे, क्योंकि यही एक तिथि है जब प्रकृति में कोई किसी को हानि नहीं पहुंचा था। किसी प्रकार का डिस्टरबेंस नहीं होता।
भगवान शिव के मस्तिष्क पर पंचमी का चंद्रमा इस बात का संदेश देता है कि जब भी कुछ बड़ा विज्ञान से जुड़ा कार्य करना हो तो उसके लिए पंचमी तिथि शुभ एवं मंगलकारी है। ध्यान, योग, साधना, तपस्या, सिद्धि, अपने इष्ट से साक्षात्कार इत्यादि के लिए पंचमी तिथि सर्वोत्तम है।