भगवान शिव के दर्शन में एक डमरु भी दिखाई देता है। जो उनके त्रिशूल से बंधा हुआ होता है। जैसा कि हम जानते हैं कि डमरु एक वाद्य यंत्र है और इसका रिश्ता संगीत से है लेकिन यह भी हम जानते हैं कि भगवान शिव के दर्शन में प्रदर्शित प्रत्येक वस्तु का विज्ञान से भी कोई न कोई कनेक्शन है। आइए जानते हैं कि भगवान शिव के डमरू का विज्ञान से क्या रिश्ता है।
धार्मिक कथाओं के अनुसार प्रकृति की रचना के समय भगवान शिव ने डमरू के माध्यम से योगदान दिया था। यह प्रकृति का सबसे पहला वाद्य यंत्र है, विज्ञान भी इससे मिलते-जुलते तथ्यों को प्रमाणित करता है। जैसा कि स्पष्ट हो चुका है कि भगवान शिव एक संप्रदाय मात्र के देवता नहीं है बल्कि ब्रह्मांड के स्वामी है। ब्रह्मांड, जिसमें अपने सौरमंडल के अलावा करोड़ों और इससे भी करोड़ों सौरमंडल शामिल हैं।
अंतरिक्ष की खोज करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी एजेंसी NASA ने एक नई आकृति की खोज की। नासा ने इसे क्रैब नेबुला नाम दिया। यह आकृति भगवान शिव के डमरू की तरह थी। भारतीय वैज्ञानिकों ने इसे शिव का डमरू नाम दिया है। सबसे खास बात यह है कि अंतरिक्ष विज्ञान के निर्धारित नियमों पर यह प्रमाणित हो गया है कि पृथ्वी से 6500 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित Crab Nebula से ना केवल अंतरिक्ष में ध्वनि आ रही है बल्कि काफी कुछ नया उत्पन्न भी हो रहा है। यानी सृष्टि का सृजन हो रहा है।