जब 15 अगस्त आता है तो पूरे देश में उत्साह और उमंग की लहरें उठने लगती हैं परंतु भोपाल का माहौल बदल जाता है। क्योंकि 15 अगस्त 1947 को भोपाल आजाद नहीं हुआ था। यहां तिरंगा नहीं फहराया गया था, बल्कि तिरंगा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। तिरंगा लहराने वालों को गोली मारने के आदेश थे।
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हैदराबाद जैसी रियासतों को भारत में मिलाया परंतु जब तक भोपाल की बारी आती वह बीमार हो चुके थे। उनकी बेटी ने स्पष्ट कर दिया था कि बीमारी के कारण वह भोपाल की कोई मदद नहीं कर पाएंगे। पंडित जवाहरलाल नेहरु भी उल्लेखनीय प्रयास नहीं कर रहे थे। केवल एक पत्रकार था जो पूरी शिद्दत से लगा हुआ था और उसका नाम था भाई रतन कुमार गुप्ता।
कितनी शर्म की बात है कि सागर और भोपाल में हर चौराहे पर क्रांतिकारियों की मूर्तियां लगी हैं परंतु किसी भी चौराहे पर सागर के सपूत और भोपाल को आजाद कराने वाले भाई रतन कुमार गुप्ता के नाम का फूल भी नहीं रखा। पत्रकार होने के नाते भाई रतन कुमार को 1946 में ही पता चल गया था कि भोपाल का नवाब भारत नहीं बल्कि पाकिस्तान के साथ जाएगा।
वह लगातार पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल से मिल रहे थे। अपने पत्रकारिता धर्म का पालन कर रहे थे। लेकिन उनके प्रयासों का कोई प्रतिफल नहीं निकला। 15 अगस्त 1947 को भारत को आजाद हो गया परंतु भोपाल स्वतंत्र नहीं हुआ। जैसा कि वर्तमान में होता है तब भी आम जनता को सत्ता और राजनीति में कोई रुचि नहीं थी। प्रो. अक्षय कुमार, बालकृष्ण गुप्ता, डॉ. शंकर दयाल शर्मा (पूर्व राष्ट्रपति) और बिहारी लाल खट्ट, भाई रतन कुमार गुप्ता की बातों पर विश्वास कर रहे थे और उनका साथ दे रहे थे।
जब सरदार वल्लभभाई पटेल की बेटी ने इनकार कर दिया तब भाई रतन कुमार ने आजादी के लिए जनसमर्थन जुटाने की ठानी। प्रख्यात पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी ने उनकी मदद की। नई राह नाम की एक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। भाई रतन कुमार गुप्ता उसके संपादक थे। चोरी छुपे जंगल के रास्ते यह मैगजीन लोगों तक पहुंचाई जाती थी।
इस प्रकार लोगों को स्वतंत्रता का महत्व बताया गया। 250 साल से हमलावरों और राजतंत्र के साथ रह रहे लोगों को लोकतंत्र के बारे में बताया गया। यह बहुत मुश्किल काम था क्योंकि जनता लोकतंत्र के बारे में कुछ जानती ही नहीं थी। भारत देश में क्या बदल रहा है और नवाब भोपाल के साथ क्या करने वाला है, उसकी साजिश का खुलासा किया गया। तब कहीं जाकर भोपाल में क्रांति की शुरुआत हुई और 1 जून 1949 को भोपाल नवाब के चंगुल से स्वतंत्र हो गया। भारत देश में शामिल हुआ।
पत्रकार भाई रतन कुमार गुप्ता ने साबित किया कि एक पत्रकार की कलम कितनी ताकतवर होती है और कितना कुछ बदल सकती है।