किसी वाद को दायर मात्र करने से वादी को न्याय नहीं मिल जाता है जब तक कोई मांग प्रतिवादी के विरुद्ध साबित न हो जाए। परन्तु न्याय मिलना उतना आसान नहीं है क्योंकि प्रतिवादी, वादी की मांग को नकारेगा या ऐसा नहीं कर पायेगा तो वह उसके विरुद्ध निर्णय होने से पहले अड़ंगा डालेगा।
प्रतिवादी (आरोपी) स्वयं के बचाव के लिए सभी ऐसे कार्य करेगा कि डिक्री, आदेश आदि वादी के पक्ष में न हो। अगर उसे लगता है कि निर्णय, डिक्री, आदेश आदि उसके विपक्ष में होने वाला है तब वह न्यायालय के क्षेत्राधिकार से दूर भाग जाएगा अर्थात फरार हो जाएगा या अपनी संपत्ति को निर्णय से पहले ही बेच देगा या अन्य तरीके से उसका ट्रांसफर करेगा जिससे डिक्री, निर्णय, आदेश आदि बेसहारा हो जाए इसी को रोकने के लिए न्यायालय किस कानून के अंतर्गत अनुपूरक कार्यवाही करेगा जानिए।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 94 की परिभाषा
अगर न्यायालय को लगता है कि डिक्री, आदेश आदि वादी के पक्ष में आने वाला है और प्रतिवादी बचाव में लिए अवैधानिक कार्य कर सकता है तब न्यायालय डिक्री, आदेश के पूर्व ही सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 94 के अनुसार अनुपूरक (अतिरिक्त) कार्यवाही करेगा जिससे कि वादी को राहत एवं सही न्याय मिल सके। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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