जब कोई बयान मौखिक रूप से बोलकर बयान नहीं दे सकता है तब वह मन के भावों को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है जैसे कि मजिस्ट्रेट द्वारा पूछा जाता है कि अपने अमुक व्यक्ति को गलत काम करते हुए देखा है तब साक्षी डर या अन्य कारण से बोल नहीं पता नहीं एवं इशारे या भावों द्वारा साक्ष्य को प्रकट करता है तब क्या उसे बयान को मजिस्ट्रेट अभिलिखित करेगा या नहीं जानते हैं इसका जबाब।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 280 की परिभाषा
जब किसी मजिस्ट्रेट या न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के समक्ष कोई साक्षी भाव भंगिमा (हाव-भाव; मन के भावों को व्यक्त करने वाली शारीरिक क्रिया।) द्वारा कोई साक्ष्य देता है तब मजिस्ट्रेट या पीठासीन अधिकारी ऐसी टिप्पणियों को जो साक्ष्य के लिए सही होगी उसको अभिलिखित करेगा।
अर्थात न्यायालय इशारे, भावों, या सिर आदि हिलाकर भावनाओं में दिए गए साक्ष्यों को साक्ष्य अभिलेख में लिखेगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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