ज्योतिरादित्य सिंधिया दुनियाभर में भले ही एक पॉलीटिकल लीडर और केंद्रीय मंत्री हो परंतु ग्वालियर में तो महाराजा ही होते हैं। यहां आयोजित सरकारी कार्यक्रमों में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को श्रीमंत महाराज साहब कहकर पुकारा जाता है।
श्रीमंत महाराज साहब ज्योतिरादित्य सिंधिया आज अपनी रियासत की राजधानी ग्वालियर में थे। यहां उन्होंने महारानी लक्ष्मी बाई की समाधि पर श्रद्धांजलि के पुष्प अर्पित किए और उन्हें देश की बेटी बताते हुए कहा कि आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। यहां उल्लेख करना अनिवार्य है कि ग्वालियर का सिंधिया राजपरिवार, महारानी लक्ष्मीबाई का सम्मान नहीं करता था। ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले (राजमाता विजयराजे सिंधिया से लेकर कैलाश वासी महाराजा माधवराव सिंधिया तक) किसी ने उनकी समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित नहीं किए।
सन 1857 की क्रांति की कहानियां बताने वाली किताबों में दर्ज है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने जब अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ते हुए ग्वालियर का किला उनसे छीन लिया था तब ग्वालियर के तत्कालीन राजा जयाजी राव सिंधिया ने आगरा में मौजूद अंग्रेजों की सेना को साथ लेकर महारानी लक्ष्मी बाई पर हमला किया। इसी हमले में लक्ष्मीबाई को वीरगति प्राप्त हुई थी। इस घटना के बाद से भारत के क्रांतिकारी सिंधिया राजवंश को गद्दार कहते हैं। और इसी घटना के बाद लॉर्ड कैनिंग ने सन 1857 की क्रांति को कुचलने के लिए जयाजी राव सिंधिया को शाबाशी देते हुए ग्वालियर के महाराजा की पदवी दी थी। कुछ किताबों में तो यहां तक लिखा है कि यदि ग्वालियर के राजा जयाजीराव सिंधिया क्रांतिकारियों का साथ दे देते तो भारत सन 1857 में ही स्वतंत्र हो जाता।
प्रसिद्ध महिला कवि सुभद्रा कुमारी चौहान ने भी अपनी लोकप्रिय कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' में ग्वालियर के राजा सिंधिया को अंग्रेजों का मित्र और गद्दार बताया है। सन 1947 से लेकर आज दिनांक तक सिंधिया राजपरिवार की ओर से इस बारे में कोई बयान नहीं दिया गया।