ग्लूकोमा (काला मोतिया या काला मोतियाबिंद) से बचने के लिए खानपान में बदलाव की सलाह दी जाती है। अगर इस रोग से बचना चाहते हैं या इसके रोगी हैं व ग्लूकोमा का प्रभाव कम करना चाहते हैं, तो डाइट में कुछ बदलाव करने चाहिए। जैसे डाइट में विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स, सी और ई लेना चाहिए। कॉफी लेने से बचें क्योंकि यह ब्लड प्रेशर को बढ़ाती है।
गाजर और हरी पत्तेदार सब्जियां ग्लूकोमा के प्रभाव को कम करती हैं, ऐसे में इन्हें जरूर खानपान का हिस्सा बनाएं। ग्रीन टी लें इसमें मौजूद पोषक तत्त्व आंखों को फायदा पहुंचाते हैं। एक्सरसाइज करें इससे स्ट्रेस में कमी आती है, जिससे आंखों पर दबाव कम पड़ता है। मेडिटेशन भी एक्सरसाइज का बेहतर विकल्प है खासकर आंखों के लिए।
ग्लूकोमा कितने प्रकार का होता है एवं लक्षण
ग्लूकोमा दो प्रकार का होता है,ओपेन एंगल ग्लूकोमा, क्लोज एंगल ग्लूकोमा। इसके लक्षण निम्न होते है कि जैसे कि नजर कमजोर होने के कारण चश्मे का नंबर बार-बार बदलना। दिनभर काम करने के बाद शाम को आंख या सिर में दर्द होना। बल्ब के चारों तरफ इंद्रधनुषी रंग दिखाई देना। अक्सर अंधेरे कमरे में आने पर चीजों पर फोकस करने में परेशानी होना। साइड विजन को नुकसान होना आदि।
ग्लूकोमा किस उम्र में होता है
ऐसा फैमिली हिस्ट्री के कारण भी हो सकता है जैसे अगर परिवार में किसी को ग्लूकोमा रहा है तो बच्चे को ग्लूकोमा होने की ज्यादा आशंका होती है। यह एक आनुवांशिक बीमारी है। 40 साल की उम्र के बाद ग्लूकोमा होने की आशंका ज्यादा होती है। इस उम्र में आंखों का रेगुलर चेकअप कराते रहें। अस्थमा या आर्थराइटिस के रोगी जो लंबे समय से स्टीरॉयड ले रहे हैं उनमें भी ग्लूकोमा होने की आशंका बढ़ जाती है। कभी आंख में जख्म हुआ हो या कोई सर्जरी हुई हो तो भी ग्लूकोमा होने की आशंका बढ़ती है। जिन्हें मायोपिया, डायबिटीज है या ब्लडप्रेशर घटता-बढ़ता रहता है उनमें दूसरे लोगों के मुकाबले ग्लूकोमा से होने वाला नुकसान ज्यादा हो सकता है। ग्लूकोमा बच्चों में भी हो सकता है।
ग्लूकोमा का इलाज
डा.महिपाल एस सचदेव के अनुसार ग्लूकोमा की स्थिति में सर्जरी की जाती है। इसमें आंखों में चीरा लगाकर ट्यूब की मदद से आंखों का पानी निकाला जाता है। इसके अलावा भी नई तकनीक हैं जिनसे इलाज किया जाता है। जिनका इस्तेमाल ग्लूकोमा की स्थिति या स्टेज के मुताबिक किया जाता है।