मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में पदस्थ सहायक आयुक्त आबकारी विभाग राज नारायण सोनी को सस्पेंड कर दिया गया है। राजनारायण पर आरोप है कि उन्होंने बेंगलुरु की कंपनी निक महुआ द्वारा प्रस्तुत की गई एफडीआर का सत्यापन नहीं किया जिसके कारण राजकोष को 15 करोड़ रुपए का नुकसान हो गया।
इस मामले में आबकारी अधिकारियों की अनियमितता मानते हुए वाणिज्यिक कर विभाग के उप सचिव कैलाश वानखेड़े ने सहायक आबकारी आयुक्त सोनी को मप्र सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम 1966 की धारा-9 के तहत निलंबित कर दिया। शुक्रवार को इस संबंध में आदेश जारी कर सोनी को आबकारी विभाग के इंदौर के संभागीय उड़नदस्ते में अटैच कर दिया है। इससे पहले इसी मामले में आबकारी आयुक्त ने सहायक जिला आबकारी अधिकारी राजीव उपाध्याय को भी निलंबित किया था।
महुआ टीवी द्वारा दी गई बैंक गारंटी में गड़बड़ी
दरअसल, वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए इंदौर जिले की शराब दुकानों का ठेका होने के दौरान खजरानी और एमआइजी की दो शराब दुकानों का ठेका बेंगलुरु की निक महुआ टीवी मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने 44.65 करोड़ रुपये से अधिक में लिया था। कंपनी के कर्ताधर्ता मोहन कुमार और अनिल सिन्हा को यह राशि वर्षभर हर 15 दिन में 24 किस्तों में जमा कराना थी।
4.70 करोड की जगह 45000 रुपए की बैंक का एफडी
ठेकेदारों ने एक निजी बैंक से एफडी बनवाकर दो बार यह राशि आबकारी विभाग में जमा की। इनमें एक बार 70 लाख और एक बार 4.70 करोड़ रुपये की राशि जमा करना थी। पर ठेकेदारों ने आबकारी अधिकारियों की आंखों में धूल झोंकी। अधिकारियों को तो 70 लाख और 4.70 करोड़ रुपये की ही एफडी प्रस्तुत की, लेकिन वास्तव में वह केवल 7 हजार और 47 हजार रुपये की एफडी थी। ठेकेदारों ने एफडी के दस्तावेजों में राशि की हेराफेरी की। आबकारी अधिकारियों की लापरवाही यह रही कि वे एफडीआर का सत्यापन नहीं करवा पाए।
निक महुआ का ठेका किया निरस्त, मुकदमा भी दर्ज करवाया
जिला प्रशासन के संज्ञान में मामला आने के बाद निक महुआ कंपनी का ठेका निरस्त कर दिया गया और आरोपित ठेकेदार राय और सिन्हा के खिलाफ इंदौर के रावजी बाजार थाने में धोखाधड़ी और कूटरचित दस्तावेज तैयार करने का मुकदमा दर्ज करवाया गया। बचे हुए समय के लिए दुकानों की फिर से नीलामी की गई, तो यह 35.5 करोड़ रुपये से घटाकर 27 करोड़ रुपये में करना पड़ी।
इससे सरकार को लगभग 8.5 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। कलेक्टर मनीष सिंह ने मामले की पूरी रिपोर्ट तैयार कर वाणिज्यिक कर विभाग को भेजी। कलेक्टर ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि इंदौर में पहले भी शराब ठेकेदारों द्वारा कूटरचित दस्तावेज से शासन को करोड़ों रुपये का नुकसान पहुंचाया गया था। इसके बाद भी सहायक आयुक्त द्वारा बैंक गारंटी का सत्यापन समय रहते नहीं करवाया गया।