मध्य प्रदेश की जनता को कंफ्यूज करने के लिए भाजपा और कांग्रेस के नेता मिलकर ऐसा फ्रेंडली मैच खेलते हैं कि मुद्दा गायब हो जाता है और बेतुकी बहस शुरू हो जाती है। अब कारम डैम मामले को ही लीजिए। एक नेता ने पत्रकारों से कह दिया कि वह डैम नहीं तालाब था। कांग्रेस के नेता इसी बात को मुद्दा बना रहे हैं। कुछ इस तरह का माहौल बनाया जा रहा है कि मामले की नए सिरे से जांच हो, जो फूटा वह बांध था या तालाब।
सीधी सरल बात है:-
- टेंडर बांध के लिए जारी हुआ था।
- जिस जमीन पर निर्माण चल रहा था वह बांध बनाने के लिए आरक्षित थी।
- जनता की जेब से सरकार ने जो 304 करोड रुपए खर्च किए, वह बांध के लिए किए थे।
- जो फूटा वह निर्मित बांध नहीं बल्कि निर्माणाधीन बांध था।
- सरकार ने जो रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया वह भी अंडर कंस्ट्रक्शन डेम के फूट जाने के खतरे के चलते चलाया गया था।
टेंडर से लेकर रेस्क्यू ऑपरेशन तक सब कुछ तो सरकारी दस्तावेजों में लिखा है। क्या फर्क पड़ता है कोई पत्रकारों से चर्चा में कह दे कि जो फूटा है वह बांध नहीं तालाब था। वैसे, इस बयान को देने वाले नेता जी का सामान्य ज्ञान भी बढ़ाया जाना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि निर्माणाधीन भी एक शब्द होता है। अंडर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग को कच्चा मकान नहीं कहते।
मुद्दे की बात
मुद्दा यह नहीं है कि वह बांध था, तालाब था, खेल का मैदान था या नेता जी की सभा के लिए तैयार किया जा रहा पंडाल। मुद्दे की बात यह है कि जनता की जेब से जिस ठेकेदार को 304 करोड़ रुपए का टेंडर दिया गया। जिन अधिकारियों पर जनता के पैसे का दुरुपयोग रोकने की जिम्मेदारी थी। क्या वह सही काम कर रहे हैं। कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हुई। सब कुछ टेंडर की शर्तों के अनुसार हो रहा है ना। यदि कहीं कोई घोटाला हुआ है तो घोटाला करने वाले जेल जाएंगे या नहीं। ✒ उमाकांत कश्यप
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