एक कलाकार का काम होता है नई नई रचनाएँ करना। रचनाकार व्यक्ति कविता, नाटक, कहानी, कोई रिपोर्ट, पुस्तकें आदि लिखता है। जब उसकी रचनाएँ सार्वजनिक होती है तब उसकी समीक्षा भी की जाती है और इस दौरान प्रशंसा के साथ आलोचना भी होती है। सवाल यह है कि लेखक की रचना की आलोचना करना, क्या उसकी मानहानि का अपराध माना जाएगा, आइए जानते हैं।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 499 (अपवाद क्रमांक 06) की परिभाषा
किसी साहित्यकार, चित्रकार, नाटककार, आविष्कारकर्ता, वस्तु शिल्पकार, संपादक, संवाददाता आदि की लोक कृति (रचनाओं) के बारे में बिना किसी भेदभाव या दुर्भावना के सदभावना-पूर्वक की गई समीक्षा एवं आलोचना मानहानि का अपराध नहीं होगा।
उधारानुसार:- 'क' एक लेखक हैं एवं वह एक मैगजीन लिखता है एवं मैगजीन की कहानियों में कुछ गलत उच्चारण शब्द छप जाते हैं। समीक्षक इसकी आलोचना करते हैं और इसे प्रबंधन की कमी घोषित करते हैं। क्योंकि उन्होंने कोई भेदभाव नहीं किया और आलोचना के योग्य हिस्से की निंदा की, अत: यह मानहानि का अपराध नहीं होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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