कारम डैम घोटाला: कमलनाथ कार्रवाई करते तो पब्लिक घरों में और ठेकेदार जेल में होता - MP NEWS

Bhopal Samachar
इंदौर
। मध्य प्रदेश के धार एवं खरगोन जिले के 19 गांव के लोग बिना किसी गलती के अपने घरों के बाहर पहाड़ पर राहत शिविर में जान बचाने के लिए रह रहे हैं। यदि तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करते तो पब्लिक अपने घरों में और ठेकेदार जेल में होता। बताने की जरूरत नहीं कि राहत शिविर में सरकारी स्कूल के एक-एक कमरे में 25-25 लोगों को ठहराया गया है। जहां पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है इन लोगों के पास पीने के पानी का इंतजाम भी नहीं है।

कारम डैम घोटाला का खुलासा सन 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले हो गया था। मध्य प्रदेश में हुए ईटेंडर घोटाले में यह भी शामिल था। चुनाव के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री थे। नियमानुसार मुख्यमंत्री को सभी टेंडर निष्प्रभावी कर देने चाहिए थे और SIT गठित करके तेजी से मामले की जांच करनी चाहिए थी। 

व्यापम घोटाले की तरह दोषी अधिकारी और ठेकेदारों को गिरफ्तार करके जेल भेजना चाहिए था और उनके टेंडर निरस्त कर देने चाहिए थे परंतु कमलनाथ ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। सरकार बनते ही उन्होंने मामले को टाल दिया। भ्रष्टाचार के प्रति उनका रुख काफी नरम दिखाई दिया। यदि कमलनाथ सही समय पर एक्शन लेते तो आज धार और खरगोन के 19 गांव की जनता को यह दिन नहीं देखना पड़ता। 

भाजपा और शिवराज सरकार की बात नहीं करेंगे क्योंकि ई टेंडर घोटाला शिवराज सिंह शासनकाल में हुआ। कार्यवाही की उम्मीद कमलनाथ से ही की जा सकती थी। इसी के लिए तो जनता ने कांग्रेस को वोट दिया था।

जीतू पटवारी ने सिर्फ सवाल उठाया, कदम नहीं उठाया 

जिस घोटाले का खुलासा कांग्रेस शासनकाल में हो चुका था और कमलनाथ सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की थी, मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद विधायक जीतू पटवारी ने 10 मार्च 2022 को उसी घोटाले से संबंधित सवाल विधानसभा में उठाया। जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने स्पष्ट कर दिया था कि घोटाला हुआ है और इसकी जांच EOW द्वारा की जा रही है, इसके बावजूद जीतू पटवारी ने कोई कदम नहीं उठाया। राजनीति में कहा जाता है कि जब विधायक विधानसभा में सवाल उठाए लेकिन ग्राउंड जीरो पर कोई कदम नहीं उठाए तो इसका मतलब होता है कि सवाल, दबाव बनाने के लिए उठाया गया था। 

जिन्हें माफी मांगनी चाहिए, वह खुद को शक्तिमान बता रहे हैं

लोकतंत्र के लिए चिंता की बात है। जिस प्रकार की घटनाओं में 80 के दशक में मंत्री अपने पद से इस्तीफा दे देते थे। 90 के दशक में क्षमा मांगते थे। आज खुद को शक्तिमान बता रहे हैं। सोशल मीडिया पर फोटो जारी किए जा रहे हैं। बार-बार जताया जा रहा है कि सरकार जनता की रक्षा करने के लिए कितनी मुस्तैद है। 

सवाल यह है कि यह जो परिस्थिति बनी है, वह किसकी गलती से बनी है। विभाग का मुखिया होने के कारण जिम्मेदारी जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट की ही बनती है। सरकार का मुखिया होने के नाते जवाबदेही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ही बनती है। इन्हें जनता से माफी मांगनी चाहिए। इन की लापरवाही के कारण 19 गांव की जनता को अपने जीवन भर की जमा पूंजी और संपत्ति बर्बाद होने के लिए छोड़कर पहाड़ों पर रहना पड़ रहा है।

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