जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एसपी नॉर्थ भोपाल के नाम नोटिस जारी करके सवाल किया है कि उन्होंने एक सब इंस्पेक्टर के खिलाफ डिपार्टमेंटल इंक्वायरी में किस अधिकार से फैसला लेते हुए उसे दंडित किया। सब इंस्पेक्टर का दावा है कि पुलिस अधीक्षक को उसे दंडित करने का अधिकार नहीं है। दंड का अधिकार डीआईजी के पास होता है, एसपी के पास नहीं।
न्यायमूर्ति मनिंदर सिंह भट्टी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता देव सिंह धुर्वे की ओर से अधिवक्ता अजय रायजादा व अंजना श्रीवास्तव ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता सहित चार अन्य पुलिस कर्मियों को एसपी नार्थ भोपाल ने 22 अगस्त, 2019 को आरोप-पत्र दिया। याचिकाकर्ता पर आरोप था कि उसने दो व तीन जुलाई की रात थाना तलैया में यश यादव के साथ अमानवीय व्यवहार करते हुए अवैधानिक रूप से उसकी पिटाई की। इस वजह से हाथ में फ्रेक्चर हो गया।
पुलिस ने मानवाधिकार का हनन करते हुए रेगुलेशन-64 के विपरीत आचरण किया। दर्द से कराहते यश को कोई चिकित्सकीय सहायता मुहैया कराए बिना पुलिस वाले मौके से गायब हो गये। इस तरह असंवेदनशीलता का परिचय दिया। यश के पिता योगेश यादव का आरोप है कि उनका बेटा घर आ रहा था। इसी दौरान उसकी कार से किसी की मोटर साइकिल को टक्कर लग गई। इस वजह से राहगीरों के साथ बहस हो गई।
दंड देने का अधिकार डीआइजी को, एसपी को नहीं
विभागीय जांच में याचिकाकर्ता ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों का खंडन किया। इसके बावजूद उसकी वेतनवृद्धि असंचयी प्रभाव से रोकने का दंड दिया गया। जिसके खिलाफ अपील की गई, जिसे निरस्त कर दिया गया। लिहाजा, डीजीपी के समक्ष अपील की गई। उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला। अंतत: हाई कोर्ट आना पड़ा। याचिकाकर्ता का मुख्य तर्क यही है कि एक तो उसे झूठा फंसाया गया है दूसरा यह कि दंड देने का अधिकार डीआइजी को था न कि एसपी को।