मध्य प्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल के इतिहास में केवल एक बड़ा युद्ध हुआ है, लेकिन वह भोपाल के लिए नहीं बल्कि मालवा की आजादी के लिए लड़ा गया था। यह युद्ध मराठा साम्राज्य के महान योद्घा श्रीमंत बाजीराव पेशवा (मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्री) और 70000 मुगल सेना के बीच लड़ा गया था।
28 मार्च 1737 को पेशवा बाजीराव ने दिल्ली के लाल किले को घेर लिया था। बाजीराव की दहशत ऐसी थी की मुगल बादशाह लाल किले में छुप गया था। 8000 मुगल सैनिक बाजीराव पेशवा को रोकने के लिए आए परंतु बाजीराव ने 20-20 मैच की तरह इस लड़ाई का फटाफट नतीजा निकाल दिया। मुगल बादशाह को सबक सिखाने के बाद बाजीराव पेशवा पुणे की तरह वापस लौट आए।
उधर दिल्ली में मुगल बादशाह निजाम उल मुल्क की बादशाहत पर सवाल उठने लगे थे। मुगल समाज में अपना सम्मान वापस पाने के लिए निजाम उल मुल्क ने 70000 सैनिकों को मराठा साम्राज्य में तबाही फैलाने के लिए भेजा। बाजीराव पेशवा को शायद इसका अनुमान पहले से ही था इसलिए उन्होंने मालवा से पहले भोपाल में अपना चक्रव्यूह रच दिया था। मुगलों की सेना आते ही भोपाल में फंस गई। उनके पास खाने के लिए दाना नहीं बचा। सैनिक भूख से तड़पने लगे।
दिनांक 7 जनवरी 1738 को मुगल सेना में एक बार फिर बाजीराव पेशवा के सामने घुटने टेके और इस बार मुगल बादशाह को मालवा मुक्त करना पड़ा। एक संधि हुई जिसमें मुगल बादशाह ने मालवा पर मराठों का आधिपत्य स्वीकार किया।
इस प्रकार दोस्त मोहम्मद खान के भोपाल की जमीन पर एकमात्र सबसे बड़ा युद्ध हुआ परंतु भोपाल के लिए नहीं बल्कि मालवा की आजादी के लिए लड़ा गया। इस समय भोपाल भी मराठा साम्राज्य का हिस्सा था (अवश्य पढ़ें- भोपाल 95 साल तक हैदराबाद और मराठा साम्राज्य का हिस्सा था) और यहां से चौथ वसूली जाती थी।