असीम और प्राचीन, निर्मम और पथरीले भू दृश्य की आगोश में समाया, प्रकृति की कोमल छटा में बसा हुआ कूनो पालपुर संघर्ष और बलिदान के किस्से सुनाने को बेकरार है। किस्से उस कूनो पालपुर जंगल के, जहां गुजरती है हुंकार वीरों और क्रांतिकारियों की। कहते हैं यहां के पानी में ही क्रांति बहती है। उसी पानी से सिंचा हुआ बागी डकैतों को पनाह देने वाला यह जंगल आज जानवरों का स्वर्ग है।
102 साल बाद कूनो नेशनल पार्क में कुछ बड़ा होने जा रहा है
विंध्याचल की शान कुनो पालपुर अभयारण्य 750 वर्ग किलोमीटर में फैला था जो अब 900 वर्ग किलोमीटर हो गया है। दीवाना बना देने वाली प्राकृतिक सुंदरता, शर्मीले जानवर इस राष्ट्रीय उद्यान को विशेष बनाते हैं, फिर भी यह भारत के पर्यटन के नक्शे पर नजर नहीं आता था। पूरे 102 साल बाद यहां कुछ बड़ा होने जा रहा है। इससे पहले 1920 में महाराजा माधवराव सिंधिया प्रथम ने अफ्रीका से शेरों को लाकर बसाया था। शेरों के बाड़े आज भी यहां मौजूद है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिन के मौके पर यहां चीता लेकर आ रहे हैं।
करथई का पेड़ बारिश के आने से पहले ही हरा हो जाता है
कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण भी विशेष है। करथई और खेर के इस जंगल में आते ही हर तरफ जंगली जानवर दिखते हैं। यहां के घास मैदान अफ्रीकन सवाना की याद दिलाते हैं और इसमें से तो कई घास मैदान कान्हा और बांधवगढ़ के मैदानों से भी बड़े हैं। करथई के बारे में माना जाता है कि बारिश आने से पहले हवा की नमी से ही यह पेड़ हरा भरा होने लगता है।
कूनो के जंगल का प्राकृतिक आकार पीपल के पत्ते की तरह था
यहां सागौन का छोटा सा जंगल भी है, ऐसा लगता है किसी ने उन्हें पूर्वी मध्य प्रदेश से उठाकर यहां सजावट के लिए रख दिया हो। कभी-कभी मानव का कुछ ना करना भी जंगल के लिए बहुत कुछ कर जाता है। शुरुआती दौर में कुन्हो केवल 350 वर्ग किलोमीटर का जंगल था। इसका आकार पीपल के पत्ते की तरह था। कूनो नदी रीड की हड्डी की तरह इसे जीवन देती थी परंतु 2018 में इसका क्षेत्रफल 400 वर्ग किलोमीटर बढ़ाकर इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दे दिया गया।
पालपुर का जंगल राजा बल बहादुर सिंह की राजधानी था
पालपुर का जंगल कभी चंद्रवंशी राजा बल बहादुर सिंह की राजधानी था। उन्होंने यहां लगभग 1666 में अपना साम्राज्य स्थापित किया था। इसी जंगल में दिखाई देता है आमेट का किला अब तो लगभग पूरी ही तरह से जंगल की आगोश में आ गया है। भव्य और विस्मयकारी जैसे शब्द कूनो नेशनल पार्क में मौजूद मैटोनी किले को देखकर छोटे पड़ने लगते हैं।
थोरेट बाबा सिद्ध वाले और बाबा रणजीत सिंह जंगल की रक्षा करते हैं
यहां इस क्षेत्र की लोककथा और संस्कृति को आज भी थोरेट बाबा सिद्ध वाले और बाबा रणजीत सिंह जी के दरबार ने जीवित रखा है। हाल ही में भारत देश ने आजादी के 75 वर्ष पूरे किए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कल्पना के अनुरूप देश अभी अमृत काल महोत्सव मना रहा है। इसी कड़ी में नामीबिया से चीतों को भारत में फिर से बसाया जा रहा है।
जानवरों के लिए सहरिया आदिवासियों ने अपने घर खाली कर दिए
परंतु नए वन्य जीव को अपने घर में शांति पसंद है इसीलिए कूनो राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत आने वाले सभी 24 गांव में 1500 से ज्यादा रहने वाले लोगों का विस्थापन करना पड़ा। उनको विस्थापित करने में पालपुर राजा श्री जगमोहन सिंह जी का अद्भुत समर्थन प्राप्त हुआ। गांव वालों को राजाजी पर अद्भुत विश्वास है। राजा, प्रजा और शासन के सामूहिक प्रयासों से 1998 से 2005 तक सभी 24 गांवों को विस्थापित कर लिया गया। उन्हें कूनो राष्ट्रीय उद्यान के बाहर अगर गांव में विस्थापित कर दिया गया। इनमे से ज्यादातर सहारिया समुदाय से थे।
सहरिया जनजाति के आदिवासी जंगल में रहना पसंद करते हैं
सहरिया समुदाय के लोग वैसे तो जंगल में रहना पसंद करते हैं। पर अब जब जंगल में इनके टूटे मकान देखते हैं तो ना जाने क्यों इन्हें देखकर सन्नाटे का नहीं बल्कि सुकून का अहसास होता है। दिल थोड़ा उदास भी होता है। इन लोगों ने जंगल की भलाई के लिए अपना घर छोड़ दिया। सहरिया समाज के लोग उन्नतिशील गांव और शहरों से दूर अपनी जिंदगी एक अलग तरीके से बिताते हैं। इन्हें बाहर की दुनिया देखने में न तो कोई चाहत है और ना ही कोई लगन। यह लोग हमारे और आपकी तरह जीवन जीना पसंद नहीं करते।
सहरिया आदिवासियों को खेत नहीं खदान पसंद है
सहरिया जनजाति भारत के कुल 75 विशिष्ट असुरक्षित जनजातीय समूह में से एक जनजाति है। केवल 28% सहरिया आदिवासी ही खेती करते हैं बाकी के खदानों में मजदूरी करते हैं। जिन सहरिया आदिवासियों को मुख्यधारा में शामिल करने की कोशिश की गई वह ज्यादातर कुपोषण का शिकार हो गए। सरकार की तरफ से सहरिया आदिवासी महिलाओं को 1000 प्रतिमाह पोषण भोजन भत्ता दिया जाता है। सरकार प्रयास कर रही है कि सहरिया जनजाति के आदिवासी आम भारतीय नागरिकों की तरह मुख्य धारा में शामिल होकर तरक्की करें।
✒ लेखक रजत शर्मा पत्रकारिता और जनसंचार विभाग के मास्टर्स फाइनल वर्ष के छात्र हैं।