भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवीं सबसे लंबी नदी और भारत देश के अंदर बहने वाली तीसरी सबसे लंबी नदी नर्मदा का उद्गम स्थल प्राचीन काल में बुंदेलखंड की सीमा में आता था। यह एक महत्वपूर्ण जानकारी है, क्योंकि जब भी बुंदेलखंड के इतिहास की बात होती है तो हजारों शौर्य की कथाएं सुनाई जाती हैं परंतु यह बहुत कम लोग बताते हैं कि बुंदेलखंड भारत के एक बड़े हिस्से की संपन्नता का कारण था।
इतिहासकार जयचंद्र विद्यालंकार के अनुसार बुंदेलखंड है जिसमें बेतवा (वेत्रवती), धसान (दशार्ण) और केन (शुक्तिगती) के काँठे, नर्मदा की ऊपरली घाटी और पचमढ़ी से अमरकंटक तक ॠक्ष पर्वत का हिस्सा सम्मिलित है। उसकी पूर्वी सीमा टोंस (तमसा) नदी है। इसमें अमरकंटक वह स्थान है जहां से नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी का उद्गम होता है। वर्तमान में यह मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में आता है।
अपने उद्गम से पश्चिम की ओर 1,312 किलोमीटर लंबी नर्मदा नदी एक ऐसी नदी है जोना केबल मध्य प्रदेश के बहुत बड़े भाग बल्कि गुजरात के लोगों की संपन्नता का कारण है। कहते हैं कि इस क्षेत्र में यदि जीवन है तो नर्मदा की कृपा से है। यहां के किसान नर्मदा नदी के कारण संपन्न है। किसानों की संपन्नता के कारण इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था सदियों से मजबूत बनी हुई है।
नर्मदा नदी के किनारे रहने वाले करोड़ों लोग 'नमामि देवी नर्मदे' उद्घोष के साथ इस नदी की पूजा करते हैं। स्कंद पुराण में नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री बताया गया है। जिन का नामकरण स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु ने किया है। इस नदी के पत्थरों को शिवलिंग के रूप में स्थापित किया जाता है और सबसे खास बात यह है कि इसके लिए किसी प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती। शास्त्रों में उल्लेख है कि भगवान शिव ने नर्मदा नदी को पृथ्वी पर एकमात्र पापनाशिनी का आशीर्वाद दिया है। नर्मदा नदी के स्मरण मात्र से पापों का नाश हो जाता है।
यही कारण है कि हर वर्ष करोड़ों लोग इतनी लंबी नर्मदा नदी की पैदल परिक्रमा करते हैं। आवश्यक है कि बुंदेलखंड के लोगों को यह ज्ञात हो और बुंदेलखंड के तीर्थ स्थलों में नर्मदा नदी के उद्गम का प्रमुखता के साथ उल्लेख हो।