मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से मात्र 190 किलोमीटर दूर पचमढ़ी को मध्य भारत का कश्मीर कहा जाता है। हर साल देसी और विदेशी पर्यटक यहां प्रकृति से रूबरू होने के लिए आते हैं। वैसे तो पचमढ़ी का इतिहास काफी पुराना है। कहा जाता है कि वनवास के समय पांडवों ने यहां समय बिताया। बौद्ध भिक्षुओं ने भी यहां पर ध्यान लगाया। यह इलाका गोंड राजाओं के अधीन था और कोरूकू जनजाति के आदिवासी यहां पर रहा करते थे परंतु दुनिया भर के सामने पचमढ़ी की सुंदरता को प्रस्तुत करने का श्रेय अंग्रेज अधिकारी कैप्टन जेम्स फोर्सिथे को जाता है।
इतिहास में दर्ज है कि तात्या टोपे की तलाश में अंग्रेज अधिकारी कैप्टन जेम्स फोर्सिथे यहां आए थे। पचमढ़ी की सुंदरता को देखकर वह इतने मोहित हो गए कि उन्होंने यहां सेना का कैंप बनाने का फैसला किया। इसके बाद अंग्रेजों ने पचमढ़ी में कई विकास कार्य की है। भारत के वन विभाग की स्थापना भी पचमढ़ी में ही हुई थी। आज भी वन विभाग का पहला हेड क्वार्टर यहां पर मौजूद है जिसे बायसन लॉज कहा जाता है। पर्यटकों के लिए यहां पर म्यूजियम बना दिया गया है।
उन दिनों वन विभाग का काम जंगल से लकड़ी काटने का हुआ करता था। यहां से सागौन और बांस के पेड़ काट कर ले जाते थे। अंग्रेज सरकार उनसे पानी के जहाज और रेलवे ट्रैक बनाया करती थी। पचमढ़ी से भाखड़ा स्टेशन तक के लिए सड़क बनाई गई थी। अंग्रेजों ने यहां से पेड़ काटे लेकिन जंगल भी लगाया। बोरी अभयारण्य में आज भी अंग्रेजों का वृक्षारोपण मौजूद है। 100 साल से ज्यादा पुराने पेड़ हजारों की संख्या में देखे जा सकते हैं। जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।