किसी भी देश, समाज और राज्य के लिए मिट्टी का काफी महत्व होता है। किसान को अपने खेत नहीं बल्कि खेत की मिट्टी से प्यार होता है। मिट्टी के कारण ही विभिन्न प्रकार का अन्न और खाद्य पदार्थ प्राप्त होते हैं। भारत में कई प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। इसमें काली मिट्टी का बड़ा महत्व है।
मध्यप्रदेश के मालवा, महाकौशल और बुंदेलखंड के दक्षिण क्षेत्र में काली मिट्टी पाई जाती। इसके अलावा महाराष्ट्र और गुजरात में भी काली मिट्टी पाई जाती है। इसे रेगुर (Black Cotton Soil) भी कहा जाता है। इसमे नाइट्रोजन,पोटास,ह्यूमस की कमी होती है जबकि मैग्नेशियम,चूना,लौह तत्व तथा कार्बनिक पदार्थों की अधिकता होती है। इसके कारण इस मिट्टी में कपास की खेती सबसे अच्छी होती है। इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइड एंव जीवांश(Humus) की उपस्थिति के कारण होता है।
काली मिट्टी को लावा मिट्टी भी कहते हैं क्योंकि यह दक्कन ट्रैप के लावा चट्टानों और मालवा पठार की अपक्षय अर्थात टूटने फूटने से निर्मित हुई मिट्टी है। भारत में सबसे ज्यादा काली मिट्टी महाराष्ट्र राज्य में पाई जाती है। इस मिट्टी की सबसे खास बात यह होती है कि यह अपने भीतर सबसे ज्यादा पानी सोख लेती है। इसी कारण यह चिपचिपी हो जाती है। इस मिट्टी में खेती करने के लिए ज्यादा जुताई नहीं करनी पड़ती। पानी सूखने पर काली मिट्टी में बड़ी-बड़ी दरारें दिखाई देती है।
इंटरनेट पर सूखी जमीन के जितने भी फोटो नजर आते हैं उनमें से ज्यादातर काली मिट्टी वाले खेत होते हैं।