मध्यप्रदेश के दतिया में स्थित पीतांबरा पीठ क्षेत्र प्राचीन काल में साधुओं की तपस्थली रहा है। श्री वनखंडेश्वर शिवलिंग की स्थापना महाभारत काल में हुई थी। सन 1935 में दतिया के राजा शत्रु जीत सिंह बुंदेला से एक ऐसे संत (परिव्राजकाचार्य दंडी स्वामी) ने भेंट की, जिनका नाम लोग आज भी नहीं जानते हैं।
कहते हैं कि उनके चेहरे का तेज कुछ ऐसा था कि उनके समक्ष आने के बाद कोई प्रश्न नहीं पूछता था। राजा ने भी परिचय नहीं पूछा। लोग उन्हें स्वामी जी महाराज कहकर पुकारते हैं। स्वामी जी ने राजा से दतिया में पीतांबरा पीठ की स्थापना की मंशा जाहिर की और राजा ने स्वामी जी के आदेशानुसार पीतांबरा पीठ की स्थापना में पूरा सहयोग दिया।
दतिया में स्थित श्री पितांबरा पीठ, बगलामुखी माता के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जो सन 1920 में परिव्राजकाचार्य दंडी स्वामी (स्वामी जी महाराज) के द्वारा स्थापित किया गया था। उन्होंने आश्रम के भीतर धूमावती देवी के मंदिर की भी स्थापना की थी, जोकि देश भर में एकमात्र है। धूमावती और बगलामुखी दस महाविद्याओं में से दो हैं।
यहां लाखों लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवरात्रि के 9 दिनों में भक्तों की लंबी कतार लगती है। वर्ष भर पर प्रत्येक शनिवार यहां मेला सा लगता है।