कहते हैं कि समुद्र मंथन के बाद से नियमित रूप से सिंहस्थ उज्जैन का आयोजन किया जाता है। यह एक महापर्व होता है इस अवसर पर दुनिया के कोने कोने में मौजूद शिव भक्त और हिमालय की कंदरा में तपस्या कर रहे साधु सन्यासी भी मध्य प्रदेश के उज्जैन आते हैं। सवाल यह कि उस समय कैलेंडर नहीं थे। फिर सिंहस्थ उज्जैन की तारीख का निर्धारण किस विधि के अनुसार किया जाता था। आइए पढ़ते हैं:-
भारत में समय की गणना की सबसे प्राचीन विधि का उपयोग आज भी किया जाता है। मंदिरों में पुजारियों के पास मिलने वाले सामान्य से पंचांग में साल भर का अंतरिक्ष विज्ञान छुपा होता है। दुनिया भर में जब लोग घोड़े और चीते की गति का अनुमान नहीं लगा पाए थे तब भारत में ग्रहों और नक्षत्रों की गति का अनुसंधान कर लिया गया था। मध्य प्रदेश के उज्जैन में सिंहस्थ का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष बाद होता है परंतु तारीख का निर्धारण किसी कैलेंडर के आधार पर नहीं किया जाता इसकी एक विशेष विधि।
सिंहस्थ उज्जैन की तारीख के निर्धारण की विशेष विधि
- जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में स्थित हो।
- जब सूर्य ग्रह मेष राशि में स्थित हों।
- जब चंद्रमा तुला राशि में स्थित हो।
- और वैशाख मास हो।
- उसके शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि।
- स्वाति नक्षत्र, व्यतिपात योग और सोमवार का दिन।
कुशस्थली- उज्जयिनी तीर्थ में संघर्ष का आयोजन होता है।
समझ में आया, समय की गणना के मामले में अपन आज भी दुनिया के सारे कैलेंडर से कहीं ज्यादा आगे चल रहे हैं। वह अनुमान लगाते हैं और अपने पास पर्फेक्ट कैलकुलेशन है।