मध्य प्रदेश के महू इंदौर से निकलने वाली चंबल नदी की कहानी अन्य नदियों से बिल्कुल भिन्न है। श्रीमद्भागवत गीता में उल्लेख है कि राजा रंतिदेव के हजारों यज्ञ से इस नदी का उद्गम हुआ है। जिस प्रकार राजा हरिश्चंद्र पृथ्वी के सबसे स्थापित सत्यवादी राजा हुए उसी प्रकार राजा रंतिदेव सबसे दानवीर राजा थे। शास्त्रों में इस नदी का नाम चर्मण्वती लिखा हुआ है। इसके बावजूद चंबल नदी को पवित्र नहीं माना जाता। इसमें धार्मिक स्नान नहीं किए जाते।
भौगोलिक नक्शे के अनुसार चंबल नदी का उद्गम जानापाव पर्वत महू इंदौर है। राजस्थान के कोटा तथा धौलपुर, मध्य प्रदेश के धार, उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर, भिंड, मुरैना आदि जिलों से गुजरते हुए उत्तर प्रदेश में यमुना नदी में जाकर मिलती है। भारतीय ग्रंथों में लिखा हुआ है कि राजा रंतिदेव के द्वारा किए गए अनगिनत यज्ञ अनुष्ठानों की शेष सामग्री से चंबल नदी का उद्गम हुआ है।
कहा यह भी जाता है कि यज्ञ के दौरान राजा पशु बलि दिया करते थे। बलि के बाद पशुओं के अवशेष यज्ञ स्थल से कुछ दूरी पर रख दिए जाते थे। इन्हीं अवशेषों से चंबल नदी का उद्गम हुआ है। यही कारण है कि इस नदी को पवित्र नदी का दर्जा प्राप्त नहीं है। विशेष धार्मिक अवसर पर जब नदियों में स्नान के पर्व होते हैं तब चंबल नदी में स्नान नहीं किया जाता।
भारत की सबसे शुद्ध नदी
इस मान्यता का एक फायदा यह हुआ है कि चंबल नदी भारत की सबसे शुद्ध नदी है। महाभारत के समय रही होगी परंतु वर्तमान में इस नदी के पानी में किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं है। इसलिए चंबल नदी में सबसे ज्यादा संख्या में जलीय जीव पाए जाते हैं। यहां तक कि यमुना नदी का प्रदूषण साफ करने का काम चंबल नदी का पानी करता है। चंबल नदी के कारण ही इलाहाबाद में यमुना नदी के भव्य दर्शन होते हैं। अन्यथा दिल्ली और आगरा में तो यमुना नदी किसी नाले की तरह दिखाई देती है।
राजा रंतिदेव कौन थे, सबसे महान दानवीर कैसे हुए
कथाओं में उल्लेख है कि राजा रंतिदेव पृथ्वी पर सबसे महान दानवीर राजा हुए। उनके द्वार से कोई भी याचक निराश होकर नहीं जाता था। एक बार उनके राज्य में अकाल पड़ा। उन्होंने अपना सब कुछ दान कर दिया। 56 दिनों तक उन्होंने भोजन नहीं किया। जब उनके पास अंतिम दिन का भोजन था तब दो भूखे नागरिक आ गए और उन्होंने अपना भोजन उन्हें दे दिया। उनके पास सिर्फ एक कलश पानी बचा था।
तभी एक व्यक्ति अपना जानवर लेकर आ गया। जानवर की प्यास बुझाने के लिए राजा ने अपना पानी दे दिया। कथाओं में यह भी उल्लेख है कि स्वयं भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश ने मिलकर राजा रंतिदेव की परीक्षा ली जिसमें वह सफल हुए। और उन्हें पृथ्वी का सबसे महान दानवीर राजा स्वीकार किया गया।
शोधकर्ताओं के लिए यह एक प्रश्न हो सकता है कि जो राजा एक जानवर का जीवन बचाने के लिए अपने जीवन के लिए आवश्यक जल का अंतिम कलश दान कर देता है। क्या वह राजा इतनी बड़ी संख्या में पशु बलि दे सकता है कि उसके अवशेषों से एक नदी का उद्गम हो जाए।