मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 10 साल से कम उम्र के बच्चों में कॉक्ससैकी वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। अस्पतालों की ओपीडी में कुल कितने बच्चे इलाज के लिए आ रहे हैं उनमें से 10% बच्चे कॉक्ससैकी वायरस का शिकार पाए जा रहे हैं, भोपाल में अब तक 150 बच्चे चिन्हित किए जा चुके हैं। डॉक्टरों का कहना है कि कॉक्ससैकी वायरस जानलेवा नहीं है लेकिन हाल ही में एक 3 साल की बच्ची को वेंटिलेटर पर रखना पड़ा।
कॉक्ससैकी वायरस के लक्षण क्या हैं
- ग्रामीण क्षेत्रों में इसे हाथ-पैर-मुंह की बीमारी कहा जाता है।
- यह 5 साल तक के बच्चों में होने वाला वायरल संक्रमण है।
- मुंह में छाले होने के साथ ही हाथ-पैर में दाने निकल आते हैं।
- ये बीमारी कॉक्ससैकी वायरस की वजह से होती है। इसमें हल्का बुखार आता है।
- वैसे तो यह बीमारी खतरनाक नहीं है और कई बार अपने आप ठीक हो जाती है।
- जिन बच्चों की इम्युनिटी कमजोर है उन्हें भर्ती भी करना पड़ता है।
कॉक्ससैकी वायरस से बच्चों का बचाव कैसे करें
- संक्रमित बच्चे से दूसरे बच्चों को दूर रखें।
- ये खांसने, छींकने और लार से फैलने वाली बीमारी है।
- संक्रमित बच्चे के साथ खाना - पाना न करें।
- बलगम को अच्छे से साफ करें। शरीर के अन्य हिस्सों में टच नहीं हो।
- बच्चों की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए पौष्टिक भोजन पर जोर दें।
- बच्चे के हाथ बार-बार साबुन से साफ कराएं।
कॉक्ससैकी वायरस पीड़ित बच्चों का क्वारंटाइन पीरियड
गांधी मेडिकल कॉलेज के पीडियाट्रिक विभाग की एचओडी डॉ. ज्योत्सना श्रीवास्तव कहती हैं कि आजकल ये देखा जा रहा है कि बच्चों को तेज बुखार आता है। इसके तीसरे-चौथे दिन हाथ, पैरों, मुंह के पास, हिप्स पर पानी भरे छाले हो जाते हैं। ये एक तरह का कॉक्सिकी इन्फेक्शन है। ये बीमारी बहुत इंफेक्शियस होती है। इसलिए अपने बच्चे को 7 दिनों तक स्कूल नहीं भेजें। वैसे तो यह बीमारी सात से दस दिनों में ठीक हो जाती है। लेकिन यदि बच्चा कोई शिकायत करे तो उसे नजरअंदाज न करें। मन से इलाज करने के बजाए डॉक्टर की सलाह लेकर दवाएं दें।