The Code of Civil Procedure, 1908 के तहत नागरिकों से संबंधित जितने भी मामले होते हैं जैसे अधिकार संबंधित, संपत्ति संबंधित, बैंक ऋण संबंधित, पारिवारिक विवाद आदि विवादों की सुनवाई सिविल कोर्ट में होती है। यहाँ वादी (शिकायतकर्ता) वाद-पत्र द्वारा प्रतिवादी (आरोपी) पर आरोप लगाता है एवं प्रतिवादी, वादी से अनुतोष (राहत) चाहता है। संपत्ति मामले में अगर प्रतिवादी को लगता है की वह केस को हारने वाला है तब वह अपनी संपत्ति को बेचने, संपत्ति स्थानांतरण, या अन्य प्रकार से उसे ठिकाने लगाने की कोशिश करेगा तब न्यायालय निर्णय से पहले प्रतिवादी पर क्या कार्यवाही करेगा जानिए।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 94 (ख) की परिभाषा:-
अगर न्यायालय को यह लगता है कि प्रतिवादी के पक्ष में निर्णय नहीं होने पर वह अपनी संपत्ति को किसी भी प्रकार से ठिकाने लगाने की कोशिश करेगा तब न्यायालय ऐसे प्रतिवादी से जमानत (संपत्ति संबंधित प्रतिभूति) ले सकता है एवं संपत्ति को न्यायालय अपने नियंत्रण में रखने का निर्देश दे सकता है।
"अगर प्रतिवादी प्रतिभूति (जमानत) ने से इनकार करता है तब न्यायालय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश क्रमांक 38 नियम(5) के अंतिम निर्णय से पूर्व प्रतिवादी की संपत्ति की कुर्की के आदेश दे सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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