कभी-कभी यदि कोई अधीनस्थ कर्मचारी अपने अधिकारी के आदेश के विरुद्ध हाई कोर्ट चला जाए और न्यायालय से उसे राहत मिल जाए तो अधिकारी खुन्नस पाल लेता है और किसी दूसरे तरीके से कर्मचारी को प्रताड़ित करता है। व्यवसायिक शिक्षकों के मामले में जब हाईकोर्ट ने कमिश्नर डीपीआई का आदेश रद्द किया तो डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के नाम पर तिकड़मबाजी शुरू कर दी गई और उनकी उम्मीदवारी रिजेक्ट करके नवीन नियुक्ति का रास्ता बनाया जाने लगा, लेकिन दूसरी बार भी व्यवसायिक शिक्षकों को न्यायालय से संरक्षण प्राप्त हुआ।
हितेश मालवीय सीहोर, जितेन्द्र बग्गड़ रतलाम, सुनील पाटीदार रतलाम, नारायण कुमावत मंदसौर, देवेंद्र मीणा नीमच, दीपक पाटीदार रतलाम, रूपचंद रतलाम, सुनील करोड़े हरदा, नितेश गुप्ता रीवा, अखलेश कुमार हरदा, मिनी कश्यप खंडवा, शिव चौरे खंडवा, प्रिया पांडेय, आयुष विश्वकर्मा, हरदा, मुस्कान तिवारी, नेहा शर्मा, वीरेन्द्र ठाकुर, शीतल चौहान, आयुषी कुशवाहा, आनंद सिंह,सतना, साक्षी जैन, विकास चतुर्वेदी, सतना, जिले में व्यवसायिक शिक्षक के रूप में वर्ष 2019 एवं उसके बाद से कार्य कर रहे हैं।
आदेश दिनाँक 17/07/21 जारी कर आयुक्त लोक शिक्षण ने पूर्व से कार्यरत व्यवसायिक शिक्षकों के स्थान पर नवीन व्यवसायिक शिक्षक भर्ती की घोषणा कर दी। इसी आदेश को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कमिश्नर डीपीआई के आदेश को गलत बताया। न्यायालय के निर्णय के बाद शासन ने भर्ती योजना को निरस्त कर, पूर्व से कार्यरत व्यवसायिक शिक्षकों के दस्तावेज योग्यता के आधार पर सत्यापन कर नियुक्ति देने की प्रक्रिया शुरू की।
दस्तावेज अनुवीक्षण (डॉक्यूमेंट की मॉनिटरिंग) के समय, अनुभव की कमी के आधार पर, व्यवसायिक शिक्षकों को नियुक्ति हेतु, अपात्र किया जा रहा था। पीड़ित होकर, उनके द्वारा उच्च न्यायालय, जबलपुर की शरण ली गई। उनकी ओर से वकील, श्री अमित चतुर्वेदी ने कोर्ट के समक्ष तर्क रखे कि, सत्यापन दिनांक को याचिकाकर्ता के पास एक वर्ष शैक्षणिक अनुभव था। व्यावसायिक शिक्षकों को अपात्र किया जाना, शासन के द्वारा कोर्ट के समक्ष दिए गए हलफनामा के विरुद्ध है। अतः, व्यवसायिक शिक्षकों को सेवा से पृथक करने पर रोक लगाई जाए।
उच्च न्यायालय की युगल पीठ ने अधिवक्ता अमित चतुर्वेदी के तर्कों से सहमत होकर, याचिका में शामिल व्यवसायिक शिक्षकों के सेवा से पृथक करने पर रोक लगाते हुए, शासन को तलब किया है।