मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच के लिए यह एक ऐतिहासिक मामला है और पुलिस डिपार्टमेंट एवं न्याय विभाग के लिए सबसे महत्वपूर्ण केस स्टडी। एक लड़की और उसके पिता ने FIR दर्ज कराने से लेकर हाईकोर्ट की सहानुभूति का दुरुपयोग करने तक लगातार झूठ बोला है। हाईकोर्ट ने एसपी से कहा है कि वह खुद पूरे मामले की जांच करें और रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
यह एक ऐसा मामला है जिसमें पीड़ित पक्ष के साथ अन्याय हुआ या नहीं जांच का विषय है परंतु प्रमाणित हो गया है कि पीड़ित पक्ष ने न्यायालय की संवेदनशीलता का फायदा उठाया और पुलिस एवं कोर्ट को अपने तरीके से उपयोग किया। मामला दतिया जिले का है। एक व्यक्ति ने अपनी बेटी को नाबालिग बताया और सोनू परिहार नाम के एक व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप लगाया। नियम अनुसार पुलिस ने FIR दर्ज की, सोनू परिहार को गिरफ्तार किया जिसे कोर्ट ने जेल भेज दिया।
लड़की के पिता ने ग्वालियर हाईकोर्ट में एक याचिका प्रस्तुत की और बताया कि उसकी बेटी बलात्कार के कारण गर्भवती हो गई है। उसकी मानसिक स्थिति बच्चे को जन्म देने की नहीं है। वह बच्चे का पालन पोषण नहीं कर सकेगी। ऐसे मामलों में न्यायालय हमेशा संवेदनशील होता है। हाईकोर्ट ने गर्भपात की अनुमति दे दी और विशेषज्ञ डॉक्टरों की देखरेख में गर्भपात हो गया।
जेल में बंद आरोपी ने जमानत याचिका प्रस्तुत करके बताया कि लड़की तो वयस्क है। अपने बयान से मुकर गई है, इसलिए उसे रिहा कर दिया जाए। अब हाई कोर्ट पीड़ित था, उसके साथ धोखाधड़ी हो गई थी। कोर्ट ने कथित रेप पीड़िता के पिता के खिलाफ अवमानना का मामला शुरू कर दिया।
इसी प्रक्रिया के दौरान डीएनए रिपोर्ट भी आ गई है। जिसमें पता चल रहा है कि आरोपी का डीएनए और लड़की के गर्भ में मौजूद भ्रूण का डीएनए अलग-अलग हैं। यानी जो जेल में बंद है वह लड़की के गर्भ में पल रहे बच्चे का पिता नहीं है। अब न्यायालय के साथ-साथ पुलिस ने पीड़ित है। उसके साथ भी धोखाधड़ी हो गई।
एक व्यक्ति और उसकी बेटी ने पूरे सिस्टम का अपने तरीके से फायदा उठा लिया है। परेशान हाईकोर्ट ने भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी से इस मामले की जांच कराने के निर्देश दिए हैं ताकि सही स्थिति सामने आ सके। देखते हैं इस कहानी के अगले मोड़ पर क्या मिलता है।