जब भी सिंधिया राजवंश की बात आती है तो सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी हुई पंक्तियों को दोहराया जाता है और दावा किया जाता है कि सिंधिया परिवार में आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं दिया बल्कि अंग्रेजों का साथ दिया। सिंधिया राजवंश की ओर से पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस विषय पर जवाब दिया है। इंडिया न्यूज़ के कार्यक्रम मंच ग्वालियर में पहली बार उनसे इस बारे में सवाल किया गया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जवाब देते हुए कहा कि मैं चाहता हूं, जो लोग यह वक्तव्य देते हैं वह इतिहास के पन्नों को पलटे। छत्रपति शिवाजी महाराज ने पहली बार इस देश में हिंदवी स्वराज का झंडा बुलंद किया था। उन्होंने जो मराठा साम्राज्य स्थापित किया उसमें सिंधिया, होलकर, गायकवाड और पेशवा यह चार मुख्य परिवार थे जो छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ जो हिंदवी स्वराज की सोच के साथ आगे बढ़े।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया कि दत्ता जी महाराज ने नजीब-उद-दौला के विरुद्ध पानीपत लड़ाई के पहले जब उनको घेर लिया गया। उनको मारा गया। तलवार उनकी छाती में घुसी हुई थी और नजीब उद दौला ने उनकी छाती पर पैर रखा और पूछा कि दत्ता जी अब लड़ोगे। दत्ता जी महाराज का जवाब था कि जिएंगे तो लड़ेंगे। यह सिंधिया परिवार का इतिहास है और यह डॉक्युमेंटेड है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया कि सन 1803 में 11 सितंबर के दिन सिंधिया परिवार के 3000 सैनिकों ने जनको जी महाराज के साथ आखरी लड़ाई अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ी और शहादत पाई। आज भी दिल्ली के समीप पटपड़गंज में वह स्तंभ लगा हुआ है कि 3000 मराठा सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की।