मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में प्राइवेट अस्पतालों की संख्या 380 के आसपास हो गई है, जबकि शहर में डॉक्टरों की भारी कमी है। कोरोना काल के बाद शहर में इस प्रकार हॉस्पिटल खुल रहे हैं जैसे महाकुंभ के अवसर पर होटल खुलते हैं। चिंता की बात यह है कि इन अस्पतालों में कोई सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर नहीं है। एक डॉक्टर के दस्तावेज 10-10 अस्पतालों में लगे हुए हैं।
बताया जाता है कि शहर के लगभग 50 अस्पतालों में सरकारी डॉक्टरों के दस्तावेज लगे हुए हैं। सभी अस्पतालों में डॉक्टरों के नाम विजिटिंग डॉक्टर की लिस्ट में मौजूद है। कुछ डॉक्टर ऐसे हैं जो RMP के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। कुल मिलाकर एक डॉक्टर कई अस्पतालों में सेवाएं दे रहा है। हालात ये हैं कि यदि सभी डॉक्टरों की जांच कराई जाए दो चौकानेवाले खुलासे सामने होंगे। यदि डॉक्टर लिस्ट के अनुसार सभी अस्पतालों में विजिट करें और एक अस्पताल में मात्र 10 मिनट का समय दें तो उसे 100 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा स्पीड से कार चलानी पड़ेगी।
सरकारी अस्पताल से पल रहे हैं, सरकारी सिस्टम से चल रहे हैं
प्राइवेट अस्पतालों में काम करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि जो कुछ भी हो रहा है सब खुलेआम हो रहा है। सब जानते हैं कि 2-4 को छोड़कर शहर के लगभग सारे प्राइवेट अस्पताल सरकारी सिस्टम से चल रहे हैं और सरकारी अस्पताल में आने वाले मरीजों से ही पल रहे हैं। ग्वालियर का सरकारी अस्पताल मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लगभग 15 जिलों में प्रसिद्ध है। लोग उस पर भरोसा करते हैं। इसलिए हालत गंभीर होने पर ग्वालियर चले आते हैं। आसपास के जिलों के डॉक्टर भी मरीज की थोड़ी सी तबीयत बिगड़ने पर ग्वालियर रेफर कर देते हैं।
सरकारी अस्पताल में व्यवस्थाएं नहीं हैं। जब भर्ती मरीज की अटेंडर को पता चलता है कि यही डॉक्टर प्राइवेट अस्पताल में आकर इलाज करेगा। प्राइवेट अस्पताल खर्चा भी ज्यादा नहीं है। तो ज्यादातर लोग प्राइवेट अस्पताल चले आते हैं।