मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भगवान श्री गणेश के कई दुर्लभ मंदिर हैं। इनके प्रसन्न होने के तरीके भी अलग-अलग हैं। फूल बाग वाले भगवान गणेश को राजस्थान में बना हुआ प्रसाद पसंद है तो जीवाजी गंज के सिद्धिविनायक बाजार में बिकने वाले मोदक से गुस्सा हो जाते हैं। उन्हें घर से बनकर आए लड्डू पसंद है।
जीवाजी गंज के सिद्धिविनायक स्वयंभू गणेश है
यह मंदिर शहर के जीवाजीगंज स्थित स्वर्ण रेखा नाम से प्रसिद्ध नदी से कुछ ही दूरी पर सिद्धिविनायक मंदिर के नाम से एक छोटे से मंदिर में स्थापित है। सिद्धिविनायक कि 350 साल से सेवा कर रही परिवार की चौथी पीढ़ी के पुजारी प्रकाश नाटेकर ने बताया कि उन्हें यह तो मालूम नहीं है कि सिद्धिविनायक की मूर्ति कब स्थापित हुई है, लेकिन इतना सुना है कि यह अपने आप प्रकट हुई थी। उनके परदादा आनंद नाटेकर ने करीब 45 साल सिद्धिविनायक की सेवा की है उसके बाद उनके दादा गजानंद नाटेकर 35 साल तक इस मंदिर की देखरेख की, फिर 30 साल उनके पिताजी मंदिर की पुजा अर्चना की है। अब वह (प्रकाश नाटेकर) 40 साल से सेवा कर रहे हैं।
कैसे प्रसन्न होते हैं, किसकी मनोकामना पूरी करते हैं
नाटेकर परिवार की चौथी पीढ़ी इस मंदिर की देखभाल कर रही है। यहां पर मूल रूप से नौकरी रोजगार, शादी विवाह और संतान के लिए अर्जी लगाई जाती है। 11 बुधवार उपवास एवं दर्शन करने का विधान है। श्री सिद्धिविनायक को पसंद करने के लिए घर से लड्डू बनाकर लाने में होते हैं। कहते हैं कि यदि बाजार में बने हुए लड्डू का प्रसाद चलाओ तो मनोकामना पूरी ही नहीं होती।
सिद्धिविनायक गणपति की पहचान क्या होती है
गणेश प्रतिमा के बारे में बताया कि जिस गणेश प्रतिमा में सीधे हाथ पर सूंड होती है उनको सिद्धिविनायक गणपति बोलते हैं और जिन गणपति के उल्टे हाथ पर सूंड होती है उनको वक्रकुंड विनायक बोलते हैं। जिनके साथ में रिद्धि सिद्धि होती है। जिन महिलाओं को बच्चे नहीं हो रहे हो युवाओं की नौकरी नहीं लग रही हो या जिन लोगो की शादी नहीं हुई हो अगर वह सिद्धिविनायक को अर्जी लगाकर 7,9,या 11 बुधवार का उपवास करते है तो उनकी सारी मनोकामना पूरी हो जाती है।