मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने जब सोमवार को एक ऑडियो वायरल होने के बाद श्री अरविंद तिवारी आईपीएस को झाबुआ के एसपी पद से हटाया था तो बहुत सारे लोगों का मानना था कि चुनाव नजदीक आ रहे हैं और लोकप्रियता बढ़ाने के लिए यह कार्रवाई की गई है परंतु जब शाम को सस्पेंड किया गया तो अनुमान और सवाल सब बदल गए।
एसपी के वायरल ऑडियो की जांच शाम तक कैसे पूरी हुई
वायरल ऑडियो को ध्यान से सुनेंगे तो एक सच यह भी होता है कि श्री अरविंद तिवारी आईपीएस को ट्रैप किया गया। उन्हें मामले के बारे में पहले से पता था। वह दोनों पक्षों को जानते थे और मामला शांत करने की कोशिश कर रहे थे परंतु कोई था जो शांति नहीं चाहता था। सबसे बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री ने पहले तत्काल हटाने के आदेश दिए। फिर शाम तक जांच करने के निर्देश दिए और शाम तक जांच पूरी हो गई। श्री अरविंद तिवारी को सस्पेंड कर दिया गया। प्रशासनिक मशीनरी की बुलेट जैसी स्पीड, मध्यप्रदेश की पहचान नहीं है। इसलिए बात बदल गई।
आईएएस मिश्रा को हटाया तो ठीक लेकिन दाग क्यों लगाया
मंगलवार की सुबह जब लोगों ने सोचा कि आईपीएस तिवारी के पंगे का पता करेंगे तब तक नई खबर आई कि सोमेश मिश्रा आईएएस को झाबुआ कलेक्टर के पद से हटा दिया गया है। थोड़ी देर बाद यह भी बताया गया कि झाबुआ में बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी की शिकायतें आ रही थी। फिर बताया गया कि मुख्यमंत्री कल झाबुआ दौरे पर गए थे उस समय उन्हें कई लोगों ने कलेक्टर की शिकायत की थी।
सभी जानते हैं कि आईएएस मिश्रा उत्तराखंड के बड़े भाजपा नेता मदन मोहन कौशिक के दामाद हैं। मध्यप्रदेश में और भी कई बेटे-दामाद कलेक्टर हैं और उनकी गलतियों को मुख्यमंत्री माफ करते चले आ रहे हैं। चुनाव में टिकट के मामले में परिवारवाद चले ना चले लेकिन ब्यूरोक्रेसी में परिवारवाद काफी फल-फूल रहा है। फिर क्या कारण था जो मदन मोहन कौशिक के दामाद के दामन पर दाग लगाया गया। शिकायत मिली थी तो एक बार उनका पक्ष भी जान लेते।
सब का मानना है कि बात कुछ और है। तिवारी जी के हाथों कुछ तो ऐसा हुआ है जिसके कारण मुख्यमंत्री इतने नाराज हो गए कि सुबह हटाया और शाम को सस्पेंड कर दिया। शायद मिश्रा जी ने इस मामले में तिवारी जी का साथ दिया जबकि उन्हें मुख्यमंत्री का साथ देना चाहिए था।