सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली डोमेस्टिक वर्किंग वुमन्स फोरम का निर्णय सुनाते हुए कहा कि दुर्भाग्यवश एक औरत हमारे देश में ऐसे वर्ग से सम्बंधित हैं जो अनेक अवरोधों के कारण अलाभकारी स्थिति में है और इसलिए वह पुरुषों की क्रूरता की शिकार होती है जिनके साथ संविधान ने उसे बराबरी का अधिकार प्रदान किया है। स्त्रियों को भी प्राण और स्वतंत्रता का अधिकार है उन्हें आदर पाने का ओर समानता का अधिकार है उनकी गरिमा और प्रतिष्ठा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है उन्हें भी एक सम्मानजनक और शांतिपूर्ण जीवन जीने का हक है।
न्यायमूर्ति सगीर अहमद ने कहा है कि स्त्रियो के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं वह माँ, पुत्री, बहन और जीवनसंगी (पत्नी) हैं ओर वह पुरूष के हाथों की कठपुतली नहीं है जैसा कि पत्र पत्रिकाओं में आजकल दिखाया जाता है। बलात्संग केवल एक महिला के विरुद्ध नहीं होता है यह पूरे समाज के विरुद्ध होता है अतः इसे रोकने के लिए हर सम्भव प्रयास करने चाहिए।
अन्तरिम प्रतिकर (विचारण की अवधि के दौरान मुआवजा) का अधिकार
बोधिसत्व गौतम बनाम शुभ्रा चक्रवर्ती:- उक्त मामले में उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय खंडपीठ ने यह अभिनिर्धारित किया कि न्यायालय को बलात्कार की शिकार महिला को अन्तरिम मुआवजा देने की शक्ति है जब तक कि परीक्षण न्यायालय आरोपी के ऊपर लगाए आरोप पर अपना निर्णय नहीं दे देता।
कुल मिलाकर बात करे तो बलात्संग की शिकार महिला न्यायालय से कार्यवाही के समय प्रतिकर (मुआवजे) की मांग कर सकती है न्यायालय महिला की आवश्यकता अनुसार महिला को कार्यवाही के समय मुआवजा दे सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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