यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के प्रति सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश जानिए- legal advice

Bhopal Samachar
जब कोई महिला बलात्संग का शिकार होती है तब वह अपनी शिकायत को लेकर पुलिस थाने एफआईआर दर्ज करवाने जाती है। उस समय वह महिला बहुत ही डरी सहमी होती है। वह नहीं समझ पाती है कि उसे क्या करना है। ऐसे में थाने के भारसाधक अधिकारी अर्थात पुलिस थाना प्रभारी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्या दिशा निर्देश दिए गए हैं जानिए।

दिल्ली डोमोस्टिक वर्किंग विमेन्स फोरम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (भारत संघ) 

उक्त वाद में उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायमूर्तियों की खंडपीठ ने महिलाओं को प्रतिकर प्रदान करने एवं उनके विधिक संरक्षण संबंधित निम्न मार्गदर्शक सिद्धांत विहित किये हैं:- 
1. बलात्संग की शिकायतकर्ता महिला को वकील के रूप में विधिक सहायता दिया जाना चाहिए। उसे (पीड़ित व्यक्ति को) कार्यवाही के बारे में पूरी जानकारी देना चाहिए एवं पुलिस स्टेशन तथा न्यायालय में सहायता ही नहीं देना चाहिए बल्कि यह भी बताना चाहिए कि अन्य प्रकार की सहायता कैसे प्राप्त की जा सकती है जैसे कि मानसिक परामर्श या चिकित्सा सहायता, मुआवजा सहायता आदि।

2. पुलिस थाने में पीड़ित व्यक्ति को विधिक सहायता देना आवश्यक है क्योंकि पीड़ित व्यक्ति वहाँ घबराया रहता है।

3. पुलिस को प्रश्न पूछने के पूर्व पीड़ित व्यक्ति को विधिक प्रतिनिधित्व के अधिकार की जानकारी देना चाहिए और पुलिस रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया जाना चाहिए कि पीड़ित व्यक्ति को इसकी सूचना दी गई थी।

4. पुलिस थाने में वकीलों की सूची होनी चाहिए जो ऐसे मामलों में स्वेच्छा से कार्य करना चाहते हैं जहाँ पीड़ित व्यक्ति का अधिवक्ता उपलब्ध नहीं है या उसे किसी के बारे में जानकारी नहीं है।

5. अधिवक्ता (वकील) की नियुक्ति पुलिस के आवेदन पर न्यायालय द्वारा यथासंभव शीघ्र की जाएगी। किन्तु यह सुनिश्चित करने के लिए की पीड़ित व्यक्ति से विलम्ब किए बिना प्रश्न पूछे जाए अधिवक्ता को न्यायालय की अनुमति के बिना भी कार्य करने के लिए अधिकार होगा।

6. बलात्कार के सभी मामलों में पीड़ित व्यक्ति की पहचान को न खुलना बनाया रखा जाएगा।

7. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 38(1) के अधीन नीति निदेशक तत्वों को ध्यान में रखते हुए आपराधिक क्षति प्रतिकर बोर्ड का गठन किया जाएगा। बलात्संग से पीड़ित महिला प्रायः बहुत अधिक वित्तीय हानि उठाता है। इनमें से कुछ तो सेवा जारी करने में असहाय होते हैं।

8. न्यायालय द्वारा पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा अपराधी के दोषसिद्ध किए जाने पर प्रदान किया जाएगा एवं आपराधिक क्षतिया प्रतिकर बोर्ड़ द्वारा दी जाना चाहिए चाहे आरोपी दोषसिद्ध हुआ हो या नहीं हुआ हो। 

सुप्रीम कोर्ट के उपर्युक्त मार्गदर्शन नियम से यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के प्रति न्यायालय और पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को मार्गदर्शक करती है कि वह ऐसी महिलाओं के साथ सहानुभूति बरते। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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