विवाह का शून्य घोषित हो जाना का अर्थ होता है एक महिला और पुरुष के बीच में ऐसा संबंध जिसे कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कानूनी रूप से अमान्य होना और अवैध होना दोनों के बीच अंतर है।
जब न्यायालय किसी विवाह को शून्य घोषित करता है तो इसका सीधा अर्थ होता है कि इस विवाह संबंधों को कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं होगा। यानी कि महिला को पत्नी के अधिकार और पुरुष को पति के कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं होंगे। आइए जानते हैं ऐसी स्थिति में क्या महिला, अपने साथी पुरुष से गुजारा भत्ता के लिए न्यायालय में दावा प्रस्तुत कर सकती है। पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण जजमेंट:-
देवकी बनाम शशि भूषण नारायण आजाद:-
उक्त मामले में पत्नी द्वारा पति पर भरण पोषण का क्लेम किया गया। पति ने बचाव में विवाह के शून्य होने का तर्क प्रस्तुत किया इस पर उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि जब तक सिविल न्यायालय द्वारा विवाह को अवैध घोषित नहीं कर दिया जाता तब तक पत्नी गुजारा भत्ता की हकदार होगी विवाह शून्य होने के बाद पत्नी का यह अधिकार समाप्त होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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