भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं आध्यात्मिक गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने आज अपनी देह त्याग दी। उनका जन्म 2 सितम्बर 1924 को हुआ था और हाल ही में उनका 99वां जन्म दिवस मनाया गया था। वह द्वारका एवं ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य थे।
स्वरूपानंद सरस्वती 4 में से 2 मठों के शंकराचार्य थे
अब से करीब 1300 साल पहले आदि गुरु शंकराचार्य ने भारत के चारों दिशाओं में चार धार्मिक राजधानियां स्थापित की थी जिन्हें गोवर्धन मठ, श्रृंगेरी मठ, द्वारका मठ एवं ज्योतिर्मठ के नाम से जाना जाता है। जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे। भारत की सनातन धर्म परंपरा में यह सर्वोच्च पद है। जिस के निर्देशों का पालन सनातन धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोग करते हैं।
9 वर्ष की उम्र में ईश्वर की खोज में निकल पड़े थे
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितम्बर 1924 को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में पिता श्री धनपति उपाध्याय और मां श्रीमती गिरिजा देवी के यहां हुआ। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली।
अंग्रेजी काल में होने क्रांतिकारी साधु कहा जाता था
यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी।