सिविल यानी दीवानी मामलों में न्यायालय का रुख नरम होता है परंतु Code of Civil Procedure, 1908 के तहत सिविल कोर्ट को यह अधिकार है कि वह किसी भी मामले में डिसीजन से पहले ना केवल गिरफ्तारी वारंट जारी कर के आरोपी को सिक्योरिटी बेल के लिए आदेशित कर सकता है बल्कि आरोपी को जेल भी भेज सकता है। आइए पढ़ते हैं कि कोर्ट को यह शक्ति किस कानून के तहत प्राप्त होती है।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 94 (क) की परिभाषा
सिविल न्यायालय को अगर लगता है कि अप्रिय निर्णय की स्थिति में आरोपी फरार हो सकता है तब सिविल कोर्ट, सिविल प्रोसीजर कोड की धारा 94 (क) के अंतर्गत सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 38 नियम क्रमांक 01 के अंतर्गत गिरफ्तारी वारण्ट भेजकर प्रतिवादी को न्यायालय में पेश करवाकर जमानत की प्रक्रिया निर्धारित कर सकता है। ताकि वादी को सही न्याय मिल सके।
अगर प्रतिवादी न्यायालय को प्रतिभूति नहीं देता है तब ऐसे में प्रतिवादी को सिविल जेल में भेज दिया जाएगा। कुल-मिलाकर साधारण शब्दों में कहे तो यह धारा सिविल कोर्ट को यह शक्ति देती है की कोई प्रतिवादी निर्णय से पहले फरार होने वाला हो उसे रोका जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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