वैज्ञानिक इसे पर्यावरण कहें या जलवायु परंतु किसान इसे मौसम कहता है। 1 दिन पहले आई ब्रेकथ्रू अजेंडा रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर का मौसम हर साल बिगड़ता चला जाएगा। धीरे-धीरे तापमान बढ़ता जाएगा और समुद्र का क्षेत्रफल बढ़ता जाएगा। समुद्र में तूफानों की संख्या बढ़ेगी जिसके कारण बेमौसम बरसात होगी। मौसम खराब होगा।
ब्रेकथ्रू एजेंडा रिपोर्ट 45 देशों की पोल खोल रही है
यह सब कुछ इसलिए होगा क्योंकि क्योंकि दुनिया के ज्यादातर देश परिस्थितियों को सुधारने के लिए तैयार ही नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी का तापमान नियंत्रित रखने के लिए ग्लासगो समिट में जो टारगेट तय किया गया था, उसको पूरा करने के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास नहीं हो रहे हैं।
COP26 में विश्व के 45 नेताओं ने मिलकर एक साथ फैसला लिया था। यह सभी अपने अपने देशों के प्रमुख भी हैं। इन्होंने ही ब्रेकथ्रू एजेंडा लॉन्च किया था। इन सभी ने मिलकर तय किया था कि 2030 तक बिजली, सड़क परिवहन, स्टील, हाइड्रोजन और कृषि क्षेत्रों में इस तरह के उपाय करेंगे जिससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो और काम भी प्रभावित ना हो, लेकिन इस एजेंडे पर 45 देशों में काम ठीक प्रकार से नहीं हो रहा है। रिपोर्ट कहती है कि जिस तरीके से काम हो रहा है उस तरीके से तो टारगेट शायद ही कभी पूरा हो पाए।
जलवायु और पर्यावरण का संरक्षण सरकारों का धर्म
जलवायु और पर्यावरण का संरक्षण हमेशा से राजाओं का धर्म रहा है। अब लोकतंत्र है तो सरकार का धर्म है परंतु विश्व के तमाम देशों की सरकारें अपना धर्म नहीं निभा रही हैं। सरकार ने तो जनता को जिम्मेदार बता रही हैं। जलवायु और परिवर्तन यह दो ऐसे शब्द है जो मनुष्यों को सीधे प्रभावित नहीं करते परंतु पृथ्वी पर मनुष्य की प्रजाति के अस्तित्व को प्रभावित करते हैं।
जलवायु और पर्यावरण के लिए जनता को जिम्मेदार बताना बंद करें
एक किसान खेत में बोई गई फसल की सिंचाई के लिए यज्ञ कर सकता है परंतु पर्यावरण के नाम पर छोटा सा हवन भी नहीं करेगा। यह दुनिया भर के मनुष्यों की आदत है। इसलिए सरकारों में बैठे नेताओं को चाहिए कि वह आम नागरिकों को जिम्मेदार बताकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने की प्रक्रिया को बंद कर दें।