साहित्य को दुनिया के कई शहरों ने बहुत कुछ दिया परंतु भोपाल ने जो दिया, और शायद ही किसी ने दिया। मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी ने भोपाल में काहिलों की जमात बनाई, और सबसे शानदार बात यह है कि भोपाल के लोगों ने इसे इतिहास की सबसे अनोखी जमात बना दिया।
उर्दू में- काहिलों की जमात का हिंदी में अर्थ होता है- आलसी लोगों का क्लब। वैसे तो दुनिया भर में आलसी लोगों के कई किस्से मौजूद हैं परंतु भोपाल वाली काहिलों की जमात सबसे अलग है। यह आलसी लोगों का एक ऐसा क्लब था जिसमें हाई लेवल की क्रिएटिविटी दिखाई देती थी। भोपाल की इकबाल लाइब्रेरी में मौजूद उर्दू मैग्जीन 'फिक्र-ओ-आगही' में इसके बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है। साहित्यकार शर्की खालिदी के लेख के मुताबिक जिगर मुरादाबादी को जमात बनाने का ख्याल साल 1932 में आया था। यह एक अनोखा क्लब था, जिसे भोपाल के महमूद अली खान के मकान में बनाया गया था।
इस क्लब के अपने नियम कायदे थे। जैसे क्लब के कैंपस में आने के बाद कोई भी व्यक्ति खड़ा नहीं रहेगा। या तो बैठ जाएगा या फिर लेट जाएगा। इस क्लब के सदस्यों में शायर, साहित्यकार और उनके फैंस शामिल थे। शर्त यह थी कि जिसको जो भी सुनाना होगा लेटे हुए ही सुनाएगा। सबसे खास बात यह थी कि आलसी लोगों की इस क्लब में किसी को सोने की अनुमति नहीं थी। रात 9:00 बजे क्लब में एंट्री होती थी और 3:00 बजे से पहले किसी को सोने की अनुमति नहीं थी। इस क्लब में ज्यादातर हाईप्रोफाइल लोग थे। दिन भर का काम निपटाने के बाद रात में शेरो शायरी की दुनिया में खो जाने के लिए आया करते थे।
नियम तोड़ने वालों के लिए सजा निर्धारित की गई थी। नियम तोड़ने वाला व्यक्ति बाकी सभी व्यक्तियों के लिए हुक्का, पान और पानी आदि के इंतजाम किया करता था।