कहते हैं भोपाल की प्यास बुझाने के लिए तालाब काफी है परंतु तालाब की प्यास बुझाने वाली नदियों को भी नमस्कार करना जरूरी है। आज हम आपको मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की एक ऐसी नदी के बारे में बताएंगे, जो यदि नहीं होती तो शायद भोपाल भी नहीं होता।
बात 11 वीं सदी की है। धार के राजा भोज एक ऐसे चर्म रोग से पीड़ित हो गए जिसका इलाज किसी भी वैद्य-हकीम के पास नहीं था। कहते हैं कि एक सिद्ध साधु ने उन्हें बताया कि यदि वह एक ऐसा जलाशय बनाएं जिसमें 365 वाटर सोर्स से पानी भरता हो, और उसमें स्नान करेंगे तो राजा की स्किन पहले की तरह दमकने लगेगी। राजा ने अपने विशेषज्ञों को इस तरह के स्थान की खोज करने के लिए भेज दिया जहां पर 365 वाटर सोर्स मौजूद होता कि जलाशय बनाया जा सके।
राजा भोज के के विशेषज्ञ बेतवा नदी के मुहाने पर आकर रुक गए क्योंकि यहां पर 356 वाटर सोर्स से पानी आ रहा था, लेकिन प्रॉब्लम यह थी कि यह संख्या सिद्ध साधु द्वारा बताई गई संख्या 365 से 9 कम थी। राजा के दरबारी परेशान थे तभी भोपाल में रहने वाले गोंड कबीले के मुखिया (कालिया) ने राजा के विशेषज्ञों एक ऐसी नदी के बारे में बताया जो जंगल में बहती है और जिसके 9 वाटर सोर्स हैं। यानी दोनों नदियों का पानी मिलाकर एक जलाशय में डाल दिया जाए तो उसका टोटल वाटर सोर्स 365 हो जाएगा।
इस प्रकार भोपाल के तालाब का निर्माण शुरू हुआ। राजा भोज बड़े प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें मृत्यु के निकट ले जा रहे चर्म रोग से मुक्ति मिल गई थी। जंगल में बहने वाली इस अज्ञात नदी का नाम गोंड आदिवासी कबीले के मुखिया कालिया के नाम पर कालियास्त्रोत रखा गया, समय के साथ इसका उच्चारण बदला और इसे कलियासोत नदी कहा जाता है।
इस नदी के पानी में आज भी काफी चमत्कारी गुण हैं। कलियासोत नदी के पानी का उपयोग किसानों के खेतों में सिंचाई के लिए किया जाता है और आश्चर्यजनक रूप से काफी अच्छी फसल होती है। काली नदी के पानी से सिंचित खेतों की फसलों में न्यूट्रिशन वैल्यू भी काफी अच्छी देखी गई है।