नई दिल्ली। कहीं भीषण गर्मी, कहीं घनघोर बारिश और बाढ़ और कहीं वायु प्रदूषण, लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। दिल्ली से बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है। लाखों लोग अपने गांव वापस लौट गए हैं, कहते हैं पैसा कब मिलेगा लेकिन कम से कम जिंदा तो रहेंगे। हालात यही रहे तो तमाम महानगर सुनसान हो जाएंगे। विकास ठप हो जाएगा। इसलिए जरूरी है कि जागरूक नागरिक अपना कर्तव्य निभाएं और सरकार को बताएं कि जनता के लिए क्या जरूरी है।
दुनिया में ऐसा क्या हुआ जिससे वैज्ञानिकों को भी घबराहट हो रही है
सन 2022 में भीषण गर्मी के कारण अमेरिका में 7 करोड लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। चीन में पानी से बिजली उत्पादन बंद हो गया और औद्योगिक शहर चोंगकिंग की सभी गतिविधियां ठप हो गई। यूरोप के जंगलों में आग लग गई। सूखा पड़ने के कारण खेतों में 17% उत्पादन कम हुआ।
घनघोर बारिश के कारण दुनिया के कई इलाकों में अचानक बाढ़ आई। ऑस्ट्रेलिया में 3.5 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ। बाढ़ के कारण यह अब तक का सबसे बड़ा नुकसान है। पूर्वी दक्षिण अफ्रीका में मात्र 2 दिन की बारिश के कारण ऐसी बाढ़ आई कि 40000 से अधिक विस्थापित हुए। 12000 से ज्यादा घर तबाह हो गए। पाकिस्तान में 1500 से ज्यादा लोग मारे गए और 3300000 लोग विस्थापित हुए। पूरे देश का एक तिहाई हिस्सा पानी में डूब गया था। भारत में सरकार ने अब तक रिकॉर्ड जारी नहीं किया है परंतु एक अनुमान है कि इस साल बाढ़ के कारण लाखों करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है।
सोशियो-पॉलिटिकल एनालिस्ट,पत्रकार,और साइंस कम्युनिकेटर के रूप में लगभग दो दशक से सक्रिय निशांत कहते हैं कि भारत में भारत का प्रति व्यक्ति औसत 1.8 टन कार्बन उत्सर्जित कर रहा है। 2 जून की रोटी के लिए जूझ रहा भारत का आम नागरिक इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए पर्यावरण की रक्षा के उपाय नहीं कर सकता। इसलिए सरकार को काम करने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार इस दिशा में गंभीरता से काम कर रही है। जरूरत केवल इतनी है कि भारत के जागरूक नागरिक इन गंभीर परिस्थितियों को समझें और सरकार को अपनी ओर से नेट जीरो के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ज्ञापन देकर डिमांड क्रिएट करें ताकि सरकार और ज्यादा काम करे, दिल्ली के लोगों को अपनी सरकार से कहना होगा कि चाहे तो बिजली और पानी का बिल ले ले लेकिन वायु प्रदूषण से मुक्ति दिलाए।क्योंकि यदि आज ऐसा नहीं किया तो अगले 5 सालों में जलवायु परिवर्तन के बाद प्रकृति जो कुछ करेगी, सरकार भारत के नागरिकों को प्रकृति के कहर से बचाने के लिए सक्षम नहीं रहेगी।