जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक याचिका के सभी पक्षों को सुनने के बाद निर्णय देते हुए कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद शासकीय कर्मचारी को दिया गया समयमान वेतनमान का आदेश निरस्त करना विधि विरुद्ध है। उच्च न्यायालय ने ऐसे आदेश को निरस्त किया और शासन को निर्देशित किया कि वह नवीन आदेश जारी करे।
श्री प्रदीप्त कुमार तैलङ्ग सहायक ग्रेड-2 के पद से पशुचिकित्सा विभाग से जिला टीकमगढ़ से दिनांक 23/09/17 में सेवानिवृत्त हुए थे। श्री तैलङ्ग को 30 वर्ष की सेवा पूर्ण होने के पश्चात, आदेश दिनाँक 23/06/15 के द्वारा तृतीय समयमान वेतन प्रदान किया गया था।
संयुक्त संचालक कोष लेखा, सागर, की आपत्ति श्री तैलङ्ग की सर्विस बुक पर इस बाबत लिखी गई थी कि, एलडीसी के रूप में 17/05/82 से 17/06/82 के बीच की सेवाएं, समयमान हेतु गणना में नही ली जा सकती है। तदनुसार, सेवानिवृत्त होने के समय तृतीय समयमान का आदेश निरस्त कर दिया गया था।
श्री तैलङ्ग द्वारा पीड़ित होकर, हाई कोर्ट की शरण ली गई थी। कर्मचारी की ओर से अधिवक्ता अमित चतुर्वेदी द्वारा कोर्ट के समक्ष दलील दी गई थी कि अनुवीक्षण समिति के अनुमोदन के बाद, सहायक वर्ग 2 को, तीसरा समयमान दिया गया था। जिसमे पात्रता के सभी बिंदुओं का परीक्षण किया गया था। समयमान निरस्त करने के समय कर्मचारी को सुनवाई का अवसर प्रदान नही किया गया। शासन द्वारा अपने जबाब में इस बात का निषेध नही किया गया है।
कोर्ट द्वारा दोनों पक्षों को सुनने के बाद, तृतीय समयमान निरस्त करने वाले आदेश को खरिज/अपास्त कर दिया गया है। कोर्ट द्वारा शासन को आदेश दिया गया। कर्मचारी को सुनवाई का अवसर देकर सभी बिंदुओं पर विचार कर, नवीन आदेश जारी किया जावे। इस प्रक्रिया के बाद, कर्मचारी को पेंशन पुनरीक्षण का लाभ, बकाया एरियर एवं वसूली से बचाव होगा।