अपराधियों के संरक्षण में कार्योत्तर विधि से संरक्षण का मौलिक अधिकार क्या है
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में आरोपी एवं अपराधियों को संरक्षण के मौलिक अधिकार देता है क्योंकि भारत की न्यायपालिका में दण्डादेश सुधारात्मक होते हैं कुछ जघन्य अपराधों को छोड़कर बाकी अपराधों में अपराधी को सुधारने के लिए जेल में डाला जाता है ताकि वहाँ सजा काटने के बाद जब वह बाहर आए तो एक अच्छे नागरिक की तरह जीवन जिए। आज हम जानते है कि संविधान में अपराधियों को प्राप्त कार्योत्तर विधि से संरक्षण का मौलिक अधिकार क्या है जानिए।
भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 20(1) की परिभाषा:-
किसी व्यक्ति को केवल उस समय की लागू विधि के अनुसार ही दण्ड दिया जाएगा जिस समय उसने अपराध किया था, चाहे निर्णय वर्तमान समय में सुनाया जा रहा है और उस विधि में अब संशोधन कर दिया गया हो।
इसे हम उधानुसार समझते हैं एक व्यक्ति 1970 में चोरी का अपराध करता है एवं उस समय चोरी के अपराध की सजा मात्र 6 माह थी लेकिन आरोपी का अपराध 1980 में सिद्ध हो पता है तब चोरी के अपराध की सजा, संशोधन होकर तीन वर्ष हो गई है तब उस आरोपी को 1970 की विधि के अनुसार ही दण्ड दिया जाएगा न की संशोधित विधि के अनुसार।
Fundamental rights in India
अर्थात भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20(1) पुराने आरोपी एवं अपराधी को वर्तमान लागू विधि से संरक्षण दिलाता है एवं उनको उक्त मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
विशेष नोट:- यह मोलिक अधिकार केवल आपराधिक मामलों के आरोपियों को प्राप्त होते हैं,सिविल मामलों के आरोपियों को नहीं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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