अस्पृश्यता मानव जीवन का एक कलंक माना जाता है। आज भी लोगों के दिमाग से छुआछूत की भावना बनी हुई है। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 तक नागरिकों समानता का अधिकार प्राप्त है। समानता का अर्थ यही हैं कि किसी भी व्यक्ति से किसी भी प्रकार से भेदभाव नहीं किया जाए, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, मूलवंश, लिंग आदि पर भेदभाव करना संविधान का उल्लंघन होता है। जानते हैं इसी संदर्भ में अनुच्छेद 17 क्या है?
भारतीय संविधान अधिनियम,1955 के अनुच्छेद 17 की परिभाषा:-
यह अनुच्छेद अस्पृश्यता (भेदभाव,छुआछुत) का अंत करता है एवं कोई भी व्यक्ति-व्यक्ति से छुआछूत नहीं कर सकेगा और अगर वह ऐसा करता है तो यह संवैधानिक अधिकार पर अतिक्रमण होगा।
अनुच्छेद 17 पर विधि:-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 एवं अनुच्छेद 35 के अधीन संसद ने सन् 1955 में अस्पृश्यता अपराध अधिनियम,1955 पारित किया था, इस अधिनियम में छुआछूत के अपराध के लिए दण्ड व्यवस्था करता एवं सजा का प्रावधान था। इसके बाद सन् 1967 द्वारा संशोधन करके अस्पृश्यता के पालन करने के लिए विहित दण्ड को और भी कठोर बना दिया गया एवं इस अधिनियम का नाम को बदलकर सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम,1955 कर दिया गया।
इसके अधीन लोकसेवक का यह कर्तव्य होगा कि वह उक्त अपराधों की जाँच करें एवं समुचित कार्यवाही तुरंत करें अगर लोकसेवक अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता है एवं जानबूझकर कर्तव्य की उपेक्षा करता है तब उसे भी दण्ड दिया जाएगा।
अस्पृश्यता का अर्थ:-
भारतीय संविधान में अस्पृश्यता शब्द को कहीं भी परिभाषित नहीं किया है लेकिन न्यायालय द्वारा समय-समय पर इसका अर्थ बताया गया है। जैसे निम्न वर्गों के साथ छुआछूत करना, रोगी से भेदभाव करना, जातिप्रथा के अनुसार भेदभाव उत्पन्न करना, मृत्यु के कारण अस्पृश्यता करना आदि।
नोट:- उच्चतम न्यायालय ने पीपुल्स यूनियन फार डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ में अभिनिर्धारित किया है कि अनुच्छेद 17 का मौलिक अधिकार राज्य के विरुद्ध उल्लंघन तो है ही यह प्राइवेट व्यक्तियों के विरूद्ध भी उल्लंघन माना जायेगा, अर्थात कोई व्यक्ति छुआछूत जैसा व्यवहार करता है तो उसके खिलाफ अनुच्छेद 32 के अंतर्गत डारेक्ट उच्चतम न्यायालय में याचिका लगाई जा सकती है क्योंकि यह मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
✍️ लेखक बीआर अहिरवार(पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665